हम ने भी देखी है दुनिया ---- -मोहसिन ज़ैद
कोई दीवार न दर जानते हैं हम इसी दश्त को घर जानते हैं जान कर चुप हैं वगरना हम भी बात करने का हुनर जानते हैं ये मुहिम हदिया-ए-सर माँगती है इस में है जाँ का ख़तर जानते हैं लद गई शाख़-ए-लहू फूलों से आएँगे अब के समर जानते हैं जान जानी है तो जाएगी ज़रूर हम दुआओं का असर जानते हैं कौन है ताबा-ए-मोहमल किस का किस का है किस पे असर जानते हैं लोग उसे मस्लहतन कुछ न कहें उस की औक़ात मगर जानते हैं रात किस किस के उड़े हैं पुर्ज़े शहर में क्या है ख़बर जानते हैं रात काटे नहीं कटती है मगर रात है ता-ब-सहर जानते हैं हम ने भी देखी है दुनिया है किधर किस की नज़र जानते हैं सब