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नया हरियाणा कैसे बने (भाग-3 )

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रोडवेजकर्मी हड़ताल हम अपने प्रदेश को हड़ताल प्रदेश नहीं देखना चाहते। कर्मचारी जाने क्यूँ इस आख़री विकल्प को अपनी उचित /अनुचित माँगे मनवाने के लिए सबसे पहले  विकल्प के रूप में चुन रहे है। पहले गेस्ट टीचर, आशा वर्कर, होमगार्ड, फायर ब्रिगेड, बिजलीकर्मी और अब रोडवेजकर्मी हड़ताल पर हैं।                 हड़ताल के सीधे-सीधे मायने हैं -कर्मचारियों का काम ना करना (mass refusal of employees to work ) यह एक तरह का  Civil resistance   होता है (non-violent ) जो किसी न किसी  ताक़त या पॉलिसी के खिलाफ किसी अच्छे बदलाव की जननी होता है।  परन्तु आजकल हड़ताल का मतलब है चुनावी समय का फायदा उठाकर , राजनितिक गलियारों और अपने साथियों के बीच  अपनी पहचान और दबदबा बनाये रखना।  चाहे एस्मा ही क्यों न लगा हो।  सरकारी परिवहन समितियों (1993), नई परिवहन पालिसी (1999), वॉल्वो बस (2006) आदि के समय भी विरोध हुआ ,और यही हम किलोमीटर स्कीम के तहत चलाई जाने वाली किराये की प्राइवेट बसों के खिलाफ देख रहे हैं। क्यूँकि बहुत से...

नया हरियाणा कैसे बने -- भाग -2

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  सरकारी अध्यापक  से उमीदें .... आज हम अच्छी गुणवत्ता वाली डिजिटल शिक्षा की बात करते हैं। । 12वें प्लानिंग कमिशन(2012-17) में  Access, Equity, Quality and Governance .की बात कही गई है।  सदा से,  ज्ञान-प्राप्ति ( learning achievements) क्लास पास करने से अधिक महत्वपूर्ण है। पर हक़ीक़त में  अध्यापक भी केवल स्कूली-किताब में छपा (  textual material) ही पढ़ाते हैं । सभी विषयों में दसवीं तक कितने ही चैप्टर्स जाने कितनी बार अलग-अलग क्लास में  अलग-अलग विषयों में शामिल हैं।    कितनी मोटी-मोटी  किताबें और ज्ञान के नाम पर क्लास पास करने के बाद  कुछ भी याद  नहीं रहता। ऐसी शिक्षा किसी नकली दवाई की तरह है।  पैसे और समय की बर्बादी और मर्ज़ वहीँ का वहीँ।  सरकारी स्कूल जहाँ अधिकतर गरीब तबके के हमारे बच्चे पढ़ते हैं वहाँ तो सर्विसेज का पूछो मत। आज सरकारी अध्यापक सिर्फ महीने की तनख्वाह पर काम करने वाला कामगार है शिक्षक नहीं। वह केवल अपनी सुविधाएं देखता है ,अपने लिये आंदोलन भी करता है।   क्या उसने कभी सोचा के...

नया हरियाणा कैसे बने --भाग -1

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परिवारवाद के शासन से मुक्ति हरियाणा जब से बना है तब से क्षेत्रिय दलों का दबदबा रहा है। और ज्यादातर पोलिटिकल परिवार ही हावी रहे हैं। अक्सर कास्ट बेस्ड पॉलिटिक्स की वजह भी यही राज-परिवार रहे हैं। हम भी, जाने क्यूँ भूल जाते हैं कि अंग्रेज़ कभी के चले गए हैं। अब हम किसी के गुलाम नहीं रहे , हम सभी बराबर हैं। कोई भी , चाहे किसी भी परिवार से हो, किसी भी वर्ग से हो ,किसी दूसरे व्यक्ति से बड़ा या सुपीरियर नहीं हो सकता। हमारी सिर्फ यही सोच हमें परिवारवाद के शासन से मुक्ति दि ला सकती है। जब भी परिवारवाद हावी होता है ,दरबारियों की पौ-बारह होती है। योग्यता गर्त में चली जाती है। सभी ऊंचे पदों पर भाई-भतीजावाद काबिज़ हो जाता है। बस यहीं से भ्रष्टाचार जड़ पकड़ना शुरू कर देता है। कोई भी ईमानदार किसी भ्रष्ट माहौल में ईमानदारी से काम नहीं कर पाता। बस इसके बाद सारी तरक्की रुक जाती है और जनता भी अपनी आवाज़ उठाने से डरने लगती है। आज दुनिया भर में साधारण परिवारों से ईमानदार लोग सत्ता पर काबिज़ हो रहे हैं। भारत में भी शरुआत हो चुकी है , आवश्यकता है नौजवानों के सामने आने की। परिवारवाद वाली राजनीतिक पार्टीज हमार...

महागठबंधन की राजनीति

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मिस्र के एक धार्मिक राजा थे सलाउद्दीन अयूबी। एक बार सारे चोर बदमाशों ने मिलकर विद्रोह कर दिया। उन्हें जंग टालने की सलाह दी गई।  पर वे बोले - बात तो ठीक है ,पर इससे बेहतर मौका मुझे नन्ही मिलेगा।  मैं कहाँ एक-एक को ढूंढ कर मारूंगा। इकट्ठे हो गए हैं तो एक ही बार में सबका फैसला हो जाने दो.  आज अगर सब , कर्णाटक में एक मंच पर खड़े 17 भावी प्रधानमंत्री एक ही साथ जनता के हाथों निबट जाएँ तो बहुत अच्छा।  हमरे देश की जनता को भी जातिवाद ,परिवारवाद ,भ्रष्टाचार के प्रतीकों को सबक सिखाने का मौका मिलेगा।  आज एक भी दल ऐसा नन्ही जो बीजेपी से पटखनी न खा चूका हो। अपने अस्तित्व को बचाना विपक्ष के लिये मोदी जी के सामने निश्चित तौर पर एक चुनौती है। हाँ कांग्रेस को विपक्षी दल भी धोखा देने से बाज़ नन्ही आते। कितने नाटकीय अंदाज़ में सोनिया गाँधी और मायावती की गाल से गाल मिलाकर ली गईं तस्वीरें वायरल हुई थीं।  मायावती जिसका खाता 2014 में जीरो था आज असेम्बली एलेक्शंस में कांग्रेस को ठेंगा दिखा रही हैं।   वाह रे महागठबंधन की राजनीति ! कौन किसका सगा है , सबने एक दूसरे को ठगा ...

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