महागठबंधन की राजनीति
मिस्र के एक धार्मिक राजा थे सलाउद्दीन अयूबी। एक बार सारे चोर बदमाशों ने मिलकर विद्रोह कर दिया। उन्हें जंग टालने की सलाह दी गई। पर वे बोले - बात तो ठीक है ,पर इससे बेहतर मौका मुझे नन्ही मिलेगा। मैं कहाँ एक-एक को ढूंढ कर मारूंगा। इकट्ठे हो गए हैं तो एक ही बार में सबका फैसला हो जाने दो.
आज अगर सब , कर्णाटक में एक मंच पर खड़े 17 भावी प्रधानमंत्री एक ही साथ जनता के हाथों निबट जाएँ तो बहुत अच्छा। हमरे देश की जनता को भी जातिवाद ,परिवारवाद ,भ्रष्टाचार के प्रतीकों को सबक सिखाने का मौका मिलेगा।
आज एक भी दल ऐसा नन्ही जो बीजेपी से पटखनी न खा चूका हो। अपने अस्तित्व को बचाना विपक्ष के लिये मोदी जी के सामने निश्चित तौर पर एक चुनौती है। हाँ कांग्रेस को विपक्षी दल भी धोखा देने से बाज़ नन्ही आते। कितने नाटकीय अंदाज़ में सोनिया गाँधी और मायावती की गाल से गाल मिलाकर ली गईं तस्वीरें वायरल हुई थीं। मायावती जिसका खाता 2014 में जीरो था आज असेम्बली एलेक्शंस में कांग्रेस को ठेंगा दिखा रही हैं।
वाह रे महागठबंधन की राजनीति ! कौन किसका सगा है , सबने एक दूसरे को ठगा है और हमारी जनता को सब पता है।
हम जो कुछ भी कहते या करते हैं उसमें हम एक स्थिति अपना रहे हैं। हम इसे पसंद करते हैं या नहीं, स्थिति राजनीतिक है । कारण, राजनीति का संबंध जीवन की हर चीज से है। हमें क्या शिक्षा लेनी है और क्या लेनी है या नहीं, हमें कौन सा काम मिलेगा और क्या मिलेगा या नहीं, हमें अपने खर्चों के लिए कितने पैसे देने होंगे और अपने और अपने परिवार के जीवन को चलाने के लिए कितना पैसा चाहिए। हम कितना पैसा कमा सकते हैं या कितना कमा सकते हैं और उससे मुझे कितना कर देना चाहिए और राज्य को करों के रूप में कितना देना चाहिए - ये सभी सवाल राजनीतिक सवाल हैं। क्या हमारी शिक्षा और जीवन के लिए तैयारी वैसी ही होनी चाहिए जैसी सभी के लिए है या हमारे अलावा कुछ अन्य लोगों को भी हमसे कम या ज्यादा अवसर हैं?
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