नया हरियाणा कैसे बने --भाग -1

परिवारवाद के शासन से मुक्ति


हरियाणा जब से बना है तब से क्षेत्रिय दलों का दबदबा रहा है। और ज्यादातर पोलिटिकल परिवार ही हावी रहे हैं। अक्सर कास्ट बेस्ड पॉलिटिक्स की वजह भी यही राज-परिवार रहे हैं। हम भी, जाने क्यूँ भूल जाते हैं कि अंग्रेज़ कभी के चले गए हैं। अब हम किसी के गुलाम नहीं रहे , हम सभी बराबर हैं। कोई भी , चाहे किसी भी परिवार से हो, किसी भी वर्ग से हो ,किसी दूसरे व्यक्ति से बड़ा या सुपीरियर नहीं हो सकता। हमारी सिर्फ यही सोच हमें परिवारवाद के शासन से मुक्ति दिला सकती है।


जब भी परिवारवाद हावी होता है ,दरबारियों की पौ-बारह होती है। योग्यता गर्त में चली जाती है। सभी ऊंचे पदों पर भाई-भतीजावाद काबिज़ हो जाता है। बस यहीं से भ्रष्टाचार जड़ पकड़ना शुरू कर देता है। कोई भी ईमानदार किसी भ्रष्ट माहौल में ईमानदारी से काम नहीं कर पाता। बस इसके बाद सारी तरक्की रुक जाती है और जनता भी अपनी आवाज़ उठाने से डरने लगती है।
आज दुनिया भर में साधारण परिवारों से ईमानदार लोग सत्ता पर काबिज़ हो रहे हैं। भारत में भी शरुआत हो चुकी है , आवश्यकता है नौजवानों के सामने आने की। परिवारवाद वाली राजनीतिक पार्टीज हमारा भविष्य कतई नहीं हो सकती। पिछले कुछ दिनों से हम अपने राज्य में भी सत्ता-संघर्ष का खेल देख रहे हैं। राजनीतिक दल स्वयं इससे मुक्त नहीं हो सकते। हमें उन कैंडिडेट्स को महत्व देना होगा जो परिवार के बल पर नहीं अपनी योग्यता के आधार पर मैदान में हों।
बस यहीं से नये हरियाणा की शुरुआत होगी.....


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