नया हरियाणा कैसे बने (भाग-3 )

रोडवेजकर्मी हड़ताल



हम अपने प्रदेश को हड़ताल प्रदेश नहीं देखना चाहते। कर्मचारी जाने क्यूँ इस आख़री विकल्प को अपनी उचित /अनुचित माँगे मनवाने के लिए सबसे पहले  विकल्प के रूप में चुन रहे है।पहले गेस्ट टीचर, आशा वर्कर, होमगार्ड, फायर ब्रिगेड, बिजलीकर्मी और अब रोडवेजकर्मी हड़ताल पर हैं।
 


              हड़ताल के सीधे-सीधे मायने हैं -कर्मचारियों का काम ना करना (mass refusal of employees to work ) यह एक तरह का Civil resistance  होता है (non-violent) जो किसी न किसी  ताक़त या पॉलिसी के खिलाफ किसी अच्छे बदलाव की जननी होता है।  परन्तु आजकल हड़ताल का मतलब है चुनावी समय का फायदा उठाकर , राजनितिक गलियारों और अपने साथियों के बीच  अपनी पहचान और दबदबा बनाये रखना।  चाहे एस्मा ही क्यों न लगा हो।  सरकारी परिवहन समितियों (1993), नई परिवहन पालिसी (1999), वॉल्वो बस (2006) आदि के समय भी विरोध हुआ ,और यही हम किलोमीटर स्कीम के तहत चलाई जाने वाली किराये की प्राइवेट बसों के खिलाफ देख रहे हैं। क्यूँकि बहुत से  यूनियन लीडर्स ना तो  वर्तमान समय की चुनौतियां समझते हैं और ना ही बदलते समय के अनुसार उनके साथ ढलना चाहते हैं।  जोसमय के साथ नहीं बदलते वे जल्द विलुप्त हो जाते हैं।



  आज किसी भी क्षेत्र में यदि आगे बढ़ना जारी रखना है तो उपयुक्त     administrative बदलाव जरूरी हैं।  पड़ोसी राज्य में  भी प्राइवेट बसें   किलोमीटर स्कीम के तहत चल रही हैं ,वहां रोडवेज यूनियन द्वारा विरोध   क्यों नहीं। किसी भी देश में रोडवेज का 100% सरकारीकरण नहीं हो   सकता।


किसी भी विभाग में यदि लगातार घाटा हो रहा हो तो सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उन कारणों को दूर करे और यदि पॉलिसीस में बदलाव की आवश्कयता हो तो वो भी करे। परन्तु पॉलिसीस कानून के मुताबिक हों न कि चुनाव को प्रभावित करने वाली। जैसा कि हरियाणा की पिछली  सरकार  ने कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का , जो की सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक निर्णय की खिलाफवर्जी था के लिये दो पॉलिसीस लाई ,जो  केवल चुनावी प्रपंच साबित हुईं और अंतत: हाई कोर्ट में धराशाई हुई ।  ये कर्मचारियों  के साथ  , पिछली सरकार का राजनितिक धोखा था।

  

केवल कर्मचारियों को लुभाने के लिए हड़ताल के आगे घुटने टेक देना प्रदेश के हित में नहीं होता।   इसका नुक़सान भी जनता की जेब से टैक्स के रूप में   होता है। हमारे टैक्स का सही इस्तेमाल हमारे ही   फायदे में हो।  सरकारें चलती ही हमारे टैक्स से हैं।   किसी भी सरकार की सफलता का पैमाना भी यही   होना चाहिये कि हमारी  टैक्स मनी का निवेश जनता   के हित में हो न कि  किसी विशेष वोटिंग क्लास को   प्रभावित /लाभ पहुंचाने के लिये ।






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