लहू में भीगे तमाम मौसम गवाही देंगे कि तुम खडे थे !

लहू में भीगे तमाम मौसम गवाही देंगे
कि तुम खडे थे !
वफ़ा के रस्ते का हर मुसाफिर गवाही देगा
कि तुम खडे थे !
सहर का सूरज गवाही देगा कि
जब अधेंरो की कोख से निकलने वाले ये सोचते थे
कि कोई जुगनू बचा नही हैं
तो तुम खडे थे !
तुम्हारे ऑंखों के ताक़चों में जलती रौशनी ने
नई मनाजिल हमें दिखाई
तुम्हारे चेहरों की बढ़ती झुरिओं ने  
वलवलों को नमुत बक्शी 
तुम्हारे भाई, तुम्हारे बेटे, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी मॉंयें
तुम्हारी मिट्टी का ज़र्रा ज़र्रा गवाही देगा कि
तुम खडे थे !
हमारी धरती के जिस्म से जब हवस के मारे,
सियाह जोंकों की तरह चिमटे
तो तुम खडे थे !
तुम्हारी हिम्मत, तुम्हारी अज़मत और इस्तक़ामत
तो वो हिमाला है कि जिसकी चोटी तक पँहुचना
न पहले बस में रहा किसी के न आने वाले दिनों में होगा !
सो आने वाली तमाम नस्लें गवाही देंगी कि
तुम खडे थे !!

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