बची हुई टॉफीज़
तब वह आखिरी टॉफी का पूरा स्वाद ले लेना चाहता है।
ज़िंदगी छोटी सी है , जीया भी खूब है इसे
बचे समय को व्यर्थ क्यूँ करूँ ?
मेरे पैकेट में भी अब और अधिक टॉफीज़ नहीं बची।
जीवन उपयोगी हो ,आत्मा भी जल्दी में रहती है
मैं बची हुई टॉफीज़ का ,जो शायद सबसे ज्यादा स्वादिष्ट होंगी
क्यूँ न जी भर के स्वाद लूँ ?
हमारी दो ज़िंदगी होती हैं ,और दूसरी तब शुरू होती है
जब महसूस होता है कि सिर्फ एक ही है ...
-नीलम चौधरी
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