इफ़्तिख़ार आरिफ़ की नज़्में तमाशा ख़त्म होगा

 बिखर जाएँगे हम क्या जब तमाशा ख़त्म होगा 

मिरे मा'बूद आख़िर कब तमाशा ख़त्म होगा 

चराग़-ए-हुज्रा-ए-दर्वेश की बुझती हुई लौ 
हवा से कह गई है अब तमाशा ख़त्म होगा 

कहानी में नए किरदार शामिल हो गए हैं 
नहीं मा'लूम अब किस ढब तमाशा ख़त्म होगा 

कहानी आप उलझी है कि उलझाई गई है 
ये उक़्दा तब खुलेगा जब तमाशा ख़त्म होगा 

ज़मीं जब अद्ल से भर जाएगी नूरुन-अला-नूर 
ब-नाम-ए-मस्लक-ओ-मज़हब तमाशा ख़त्म होगा 

ये सब कठ-पुतलियाँ रक़्साँ रहेंगी रात की रात 
सहर से पहले पहले सब तमाशा ख़त्म होगा 

तमाशा करने वालों को ख़बर दी जा चुकी है 
कि पर्दा कब गिरेगा कब तमाशा ख़त्म होगा 

दिल-ए-ना-मुतमइन ऐसा भी क्या मायूस रहना 
जो ख़ल्क़ उट्ठी तो सब कर्तब तमाशा ख़त्म होगा 

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