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Showing posts from October, 2017
नहीं मानी दिल्ली, हवा फिर हुई धुंआ-धुंआ सुना है कल  पटाखे बंद थे, कौन सी दिल्ली में बंद थे? पटाखों पर बैन भी बिलकुल वैसा साबित हुआ, जैसे पंचकूला में धारा 144 हुई थी  कल रात माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को बाज़ारों में बिकते हुए और धुआं होते हुए देखा  दिवाली के बाद शुक्रवार की सुबह आसमान में प्रदूषण भरी धुंध साफ देखी जा सकती है.  आंकड़ों की भी बात करें तो बीते साल दिवाली से प्रदूषण कम तो हुआ है लेकिन इसमें बड़ी गिरावट नहीं है. उम्मीद थी कि इस रोक के बाद लोग पटाखे नहीं फो़ड़ेंगे और दिवाली की सुबह धुंध और प्रदूषण भरी नहीं होगी.  लेकिन ऐसा नहीं हुआ, लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े और सुबह वायु प्रदूषण ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया.  हमे प्रदूषण पर काम करना चाहिए न कि राजनीति संविधान कोर्ट के फैसले का सम्मान करना सबका धर्म है लेकिन अपने जोश में लोग कानून का उल्लंघन कर रहे हैं. किसी भी देश की कोर्ट कानून से बड़ा कोई नही है क्योंकि देश संविधान कानून से चलता है मानसिक गुलामी से नहीं सुप्रीम कोर्ट  के  पटाखों पर एकतरफा बैन लगाने के बजा...
टूटते रिश्ते कहतें हैं प्रेम अँधा होता है और विवाह आँखे खोलता है। आधुनिक जोड़े आज भी बिना एक दूसरे की अच्छी तरह जाने विवाह जैसा निर्णय जल्दबाज़ी में ले लेते हैं। फिर होता क्या है कि कुछ ही समय  में ही अलग रहने का रास्ता तलाशने लगते हैं। स्त्रियां आज अधिक पढ़ी लिखी हैं , अधिक आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं। तो विवाह की सफलता अधिकतर इस बात पर निर्भर करती हे कि एक दूसरे को, उनके माता -पिता को ,एक दूसरे की आदतों को ,जॉब्स को कौन  कितना और कब तक बदार्शत कर सकता है। स्त्रियां भी मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का होंसला रखती हैं और यदि अलग रहने की नौबत आये भी तो घबराती नही। विवाह और तलाक़ आज दोनों ही आम सी बात हैं। एक सुखद विवाह किसी भी जोड़े की मानसिक और शारीरिक सेहत को भी बनाए रखता है। बढ़ते बच्चों के लिये भी खुश परिवार उन्हे मानसिक,शारीरिक , शिक्षा और सामाजिक समस्याओं से बचाता है। अलग रहना या तलाक़ लेना भावनात्मक रूप से तकलीफ़ देह होता है ,फिर भी सम्बन्ध विछेद को एक सकारातमक तरीके से लेना चाहिए। अपने कम्युनिकेशन को बनाये  रखें और बच्...

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