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क्यूँ कुछ रास्ते कभी कहीं नहीं जाते.......

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क्यूँ ठहर सी जाती है जिंदगी किसी मोड़ पर ....... क्यूँ कुछ रास्ते कभी कहीं नहीं जाते.......
शामिल किया तन्हाईओं में जबसे तुझे  ?  ....... न सोज़े दिल रहा कोई .... न तब्बुसम का निशां बाक़ी......
नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी
उस ने जब बोलना न सीखा था उस की हर बात मैं समझती थी अब वो शाएर बना है नाम-ए-ख़ुदा लेकिन अफ़सोस कोई बात उस की मेरे पल्ले ज़रा नहीं पड़ती
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं

मिर्ज़ा ग़ालिब 1797-1869

नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने  क्या बने बात जहाँ बात बताए न बने  मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर  ऐ जज़्बा-ए-दिल  उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए काश यूँ भी हो  कि बिन मेरे सताए न बने ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगर कोई पूछे  कि ये क्या है तो छुपाए न बने उस नज़ाकत  का बुरा हो वो भले हैं तो क्या हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने  कह सके कौन  कि ये जल्वागरी किस की है  पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने  मौत की राह न देखूँ  कि बिन आए न रहे तुम को चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने  बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली-मीना कुमारी

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी  आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली -मीना कुमारी

Mera khuda naraj hai mujhe sey

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  Mera khuda naraj hai mujhe sey Kayun mainey tujhey , Apna khudha kahay dala------  मेरा खुदा नाराज़ है मुझसे   क्यूँ मैंने तुझे  अपना खुदा कह डाला -----------                                               مرة خودا نعرج حي مجزي                                                كاين ميني توجهي                                                أبنة خودا كاهي دالة -----  Zindagi tu mujhey kia kia rang dikhati hai...... par mera hunar dekh,z tu dekh mera zarf... Mai, Inhi rangon sey ...

कतरनें ----नीलम चौधरी

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                                          कतरनें                                                 क्यू बिफरते हो ,बिगड़ते हो                                  ज़माने की  बदली  हवाओं  पर ,                                       ये तो दौर ही ऐसा है ,           ख़ामोश रहने वालों की                       ख़बर कोई नहीं लेता।                                       ...

तरकश के तीर-----नीलम चौधरी

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तरकश के तीर-----नीलम चौधरी चर्खन्दाज हूँ ... जफ़ाकश हूँ ; तो ,क्यूँ न तान दूँ तरकश के सारे तीर उसके सीने में एक भी कतरा लहू का न छोड़ा  इस ज़ीरूह ज़िस्म में।  ये  उड़ती  धूल-आँधी , मेरे निशां मिटाने पे अड़ी है ; और  एक मैं हूँ  जो  इन्हें बिखरने नहीं  देती . .... 

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