कतरनें ----नीलम चौधरी
कतरनें
क्यू बिफरते हो ,बिगड़ते हो
ज़माने की बदली हवाओं पर ,
ये तो दौर ही ऐसा है ,
ख़ामोश रहने वालों की
ख़बर कोई नहीं लेता। -
दीवार पर लिखी हर बात सच नहीं होती ,
दरकती रेत भी किस्से बयां करती है।
----नीलम चौधरी
मुश्किलें हालात से न डर
ना बैठ यूँ दामन समेट कर
बेशक़ नीमकश रहीं कोशिशें तेरी
उठ ! कर रफ़्तार तेज़ अपने कदमों की
मंजिले-गुलिस्ताँ अब दूर नंही।
----नीलम चौधरी
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