तुझ से बिछड़ कर भी ज़िंदा था मर मर कर ये ज़हर पिया है चुप रहना आसान नहीं था बरसों दिल का ख़ून किया है जो कुछ गुज़री जैसी गुज़री तुझ को कब इल्ज़ाम दिया है अपने हाल पे ख़ुद रोया हूँ ख़ुद ही अपना चाक सिया है कितनी जाँकाही से मैं ने तुझ को दिल से महव किया है सन्नाटे की झील में तू ने फिर क्यूँ पत्थर फेंक दिया है
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
खुद में खुद की तलाश अभी बाकी है..... ढूंढ़ता रहता हूँ खुद को खुद ही के सायें में... जब से तलाश ज़माने में करनी छोड़ी है खुद से सवाल करना बाकी है...... जवाब अभी खुद से ढूंढने कई बाकी हैं .. भुलाने के लिए दर्द को. ... झूठ बहुत बोले मैंने .. ख़ुशी की खातिर अभी कुछ सच बोलना बाकी है लड़खड़ाये कदम .. राहे जिंदगी में तो क्या ? मेरे कदमों में लय-ताल अभी बाकी है... हर सच का निकला इक और चेहरा... ये चेहरा वो चेहरा ....... हर चेहरे पे एक और चेहरा......... इक सच्चे चेहरे की तलाश अभी बाक़ी है.... अब तलाश चेहरों की छोड़...... दिल से रूबरू होना है सामना खुद की नज़रों से होना भी अभी बाकी है देखा है मैंने खुद को इस भीड़ की नजर से ...अब तक जरा सवांर लूं खुद को फुरसत से तलाश अभी खुद की बाकी है....... ----unknown .
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़ सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं सुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है सो उसको सुरमाफ़रोश आह भर के देखते हैं सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं ...
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत[1] का भरम रख तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ पहले से मरासिम[2] न सही फिर भी कभी तो रस्मे-रहे-दुनिया[3] ही निभाने के लिए आ किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया[4] से भी महरूम [5] ऐ राहत-ऐ-जाँ[6] मुझको रुलाने के लिए आ अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम[7] को तुझ से है उम्मीदें ये आखिरी शम्अ भी बुझाने के लिए आ शब्दार्थ ऊपर जायें ↑ प्रेम के गर्व ऊपर जायें ↑ प्रेम व्यवहार ऊपर जायें ↑ सांसारिक शिष्टाचार ऊपर जायें ↑ रोने के स्वाद ऊपर जायें ↑ वंचित ऊपर जायें ↑ प्राणाधार ऊपर जायें ↑ किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है 'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब आँखों के सहरा नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में कुछ याद जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते उश्शाक़ के मानिंद कई अहल-ए-हवस भी पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते
शोअ'ला था जल बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो मैं कब का जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया अब तुम तो ज़िंदगी की दुआएँ मुझे न दो ये भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी ऐ ख़ुसरवान-ए-शहर क़बाएँ मुझे न दो ऐसा न हो कभी कि पलट कर न आ सकूँ हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो कब मुझ को ए'तिराफ़-ए-मोहब्बत न था 'फ़राज़' कब मैं ने ये कहा है सज़ाएँ मुझे न दो
Tumhare Shaher Ka Mausam, Munni Begum Tumhare Shaher Ka Mausam Barha Suhana Lagge.. Main Eik Shaam Chura Loon Agar Bura Na Lagge.. Tumhare Bas Mein Agar Ho To Bhul Jao Mujye.. Tumhe Bhulane Mein Shayad Mujye Zamana Lagge. . Humare Pyaar Se Jalne Laggi Hai Eik Duniya.. Duwa Karro Kissi Dushman Ki Bad Duwa Na Lagge.. Main Eik Shaam Chura Loon Agar Burra Na Lagge.. Tumhare Shaher Ka Mausam Barra Suhana Lagge.. Jo Dub Na Hai To Itne Sakoon Se Dubbo.. Ke Ass Paas Ki Lehroon Ko Bhi Pata Na Lagge.. Kuch Is Aadha Se Mere Saath Bewafai Kar.. Ke Tere Baad Mujye Koi Bewafa Na Lagge.. Tumhare Shehar Ka Mausam Barra Suhana Lagge... Main Eik Shaam Chura Loon Agar Burra Na Lagge...
ऊँची उठती हूँ मैं, कि पहुँचू नियत झरने तक टूटे ये पंख लिए, मैं चढ़ती हूँ ऊपर तारों तक। मेरे जीवन की क्षुधा, नहीं मिटेगी जब तक मत आना हे मृत्यु, कभी तुम मुझ तक।