ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते
अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं
 मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते

कुछ मुश्किलें ऐसी हैं
कि आसाँ नहीं होतीं
कुछ ऐसे मुअम्मे हैं
कभी हल नहीं होते

शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब
आँखों के सहरा
नमनाक तो हो जाते हैं
जल-थल नहीं होते

कैसे ही तलातुम हों
मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में
कुछ याद जज़ीरे हैं
 कि ओझल नहीं होते

उश्शाक़ के मानिंद
कई अहल-ए-हवस भी
पागल तो नज़र आते हैं
पागल नहीं होते

सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़'
ऐसा नहीं है
जैसे कई अशआर
 मुकम्मल नहीं होते

Comments

Popular Posts

Doordarshan Era Newsreaders and Anchors

मशहूर अमरूद की ललित किस्म अब अरुणाचल प्रदेश के किसानों की अामदनी बढ़ाएगी,

जाने ये किस की बनाई हुई तस्वीरें हैं -अमीर क़ज़लबाश

31 जनवरी 2018 तक पूरे देश के गन्ना किसानों का 13931 करोड़ रुपए बकाया है

अमीर क़ज़लबाश 1943-2003दिल्ली

बशीरबद्र

हर शाम एक मसअला घर भर के वास्ते -अमीर क़ज़लबाश

लहू में भीगे तमाम मौसम गवाही देंगे कि तुम खडे थे !

नया हरियाणा कैसे बने (भाग-3 )

SHARE YOUR VIEWS

Name

Email *

Message *