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Showing posts from September, 2018

युधिष्ठिर को अंतिम शिक्षा

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दूरदर्शन का सबसे चर्चित धरावाहिको में से एक बी. आर. चौपडा की महाभारत  का एक दृश्य जिसमे भीष्म पितामह  बा णों की शय्या पे लेटे हुए है। उसी समय पाण्डव भगवान कृष्ण के साथ वहां उन्हें ये बताने के लिए आते है की हस्तिनापुर अब चारो ओर से सुरक्षित है , क्यूंकि कौरवों का पराजय हो चुकी है और अब उसका   रा जा धर्मराज युधिष्ठिर हैं। उसी समय भगमान श्री कृष्ण पितामह से कहते है की आप युधिष्ठिर को अंतिम शिक्षा दीजिये , तो पितामह युधिष्ठिर से कहते है। हे वत्स  !  वो राजा कभी अपने देश के लिए सही नहीं होता है जो अपने देश के आर्थिक और सामाजिक रोगों के लिए अतीत को उत्तरदायी ठहरा के संतुष्ट हो जाये। यदि अतीत ने तुम्हे एक निर्बल आर्थिक और सामाजिक ढांचा दिया है तो उसे बदलो , उसे सुधारो क्यंकि अतीत तो यूँ भी वर्तमान के कौसौटी पे खड़ा नहीं उतरता है। क्यूंकि अगर अतीत स्वस्थ होता और उसमे देश को प्रगति के मार्ग पे ले जाने की शक्ति होती तो...

हमें खामोश रहने दो

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तहज़ीब, अदब और सलीका  भी तो कुछ है, झुका हुआ हर शख़्स,  बेचारा नहीं होता । हम समंदर है   हमें खामोश रहने दो , ज़रा मचल गए तो   शहर को ले डूबेंगे । (Unknown)

ये चालाकों की बस्ती थी और हज़रत शर्मीले थे -ग़ुलाम मोहम्म-द 'क़ासिर'

मेरे क़िस्से में अचानक जुगनुओं का ज़िक्र आया  आसमाँ पर मेरे हिस्से के सितारे जल रहे हैं  राख होते जा रहे हैं माह-ओ-साल-ए-ज़िंदगानी  जगमगा उठ्ठा जहाँ हम साथ पल दो पल रहे हैं  जुनूँ का जाम मोहब्बत की मय ख़िरद का ख़ुमार  हमीं थे वो जो ये सारे कमाल रखते थे  सब से कट कर रह गया ख़ुद मैं सिमट कर रह गया  सिलसिला टूटा कहाँ से सोचता भी मैं ही था  शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे  घिसते घिसते घिस गए आख़िर कंकर जो नोकीले थे  कौन ग़ुलाम मोहम्मद 'क़ासिर' बेचारे से करता बात  ये चालाकों की बस्ती थी और हज़रत शर्मीले थे 

अटल बिहारी वाजपेयी जी यह 4 काम दिल से करना चाहते थे

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अटल बिहारी वाजपेयी जी यह 4 काम दिल से करना चाहते थे ....                    वाजेपयी जी ने इन 4 कामों को पूरा करने के प्रयास भी बहुत किए                                      लेकिन,यह अधूरे रह गए, अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के सिर पर है कि क्या वे ये अधूरे 4 कार्य पूरे करेंगे ??                      -कवि, साहित्यकार, पत्रकार और अजातशत्रु  , स्वर्गीय श्री  अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के तौर पर कई कामों के लिए याद किया जाता है। देश में सड़कों का जाल बिछाने की योजना हो या फिर मोबाइल क्रांति, कई मोर्चों पर वाजपेयी जी ने अपनी दूरदर्शिता दिखाई। इसके साथ ही परमाणु परीक्षण को भी वाजपेयी सरकार ने आक्रामक तरीक़े से अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश किया था। लेकिन,  ऐसे भी कई मोर्चे थे, जिनपर काफ़ी प्रयास करने के बावजूद वाजपेयी जी सफल नहीं हो पाए थे ,  वाजपेयी जी इन 4 कामों क...

मैं भी तुझसे कम नंही

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   आह ! ज़िन्दगी  तू मुझे कैसे -कैसे रंग दिखाती है    पर मैं  भी  तुझसे कम नंही , इन्ही रंगों  से  नई तस्वीर  बना  लेती  हूँ

शीशा या मैं

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देखी दरार  मैंने आज  आईने में, पता नहीं  शीशा टूटा था,  या मैं?

आज तुझको खत लिखूँ तो......

खत लिखे थे प्यार के जब, दिन दुबारा लौट आये आज तुझको खत लिखूँ तो, क्या पता तू लौट आये ? दूर के जितने पते हैं, रास्तों से पूछ लूँगा क्या पता कोई संदेशा , मीत तेरा लौट आये ? आज फिर इन बारिशों में, भीगने का मन हुआ था आज तेरे गेसुओं को, छेड़ने का मन हुआ था हो गया मौसम यहाँ पर , आज फिर बेचैनियों का धड़कनों की धुन सुने तो, क्या पता तू लौट आये ?-- Unknown

क़लम जब तुमको लिखती है

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क़लम जब तुमको लिखती है, दख़ल-अंदाजी  फ़िर हम भी नहीं करते। ----- कमबख्त नींद से  मेरी लड़ाई चल रही है। ----- मुझे आग़ोश में लेकर,  तेरे किस्से  सुनाती है मेरी रातें, और  मुझे ही सुलाना भूल जाती हैं ----- 

हम ने भी देखी है दुनिया ---- -मोहसिन ज़ैद

कोई दीवार न दर जानते हैं  हम इसी दश्त को घर जानते हैं  जान कर चुप हैं वगरना हम भी  बात करने का हुनर जानते हैं  ये मुहिम हदिया-ए-सर माँगती है  इस में है जाँ का ख़तर जानते हैं  लद गई शाख़-ए-लहू फूलों से  आएँगे अब के समर जानते हैं  जान जानी है तो जाएगी ज़रूर  हम दुआओं का असर जानते हैं  कौन है ताबा-ए-मोहमल किस का  किस का है किस पे असर जानते हैं  लोग उसे मस्लहतन कुछ न कहें  उस की औक़ात मगर जानते हैं  रात किस किस के उड़े हैं पुर्ज़े  शहर में क्या है ख़बर जानते हैं  रात काटे नहीं कटती है मगर  रात है ता-ब-सहर जानते हैं  हम ने भी देखी है दुनिया   है किधर किस की नज़र जानते हैं सब   

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला -ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला  और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला  तस्वीर नहीं बदली शीशा भी नहीं बदला  नज़रें भी सलामत हैं चेहरा भी नहीं बदला  है शौक़-ए-सफ़र ऐसा इक उम्र से यारों ने  मंज़िल भी नहीं पाई रस्ता भी नहीं बदला  बेकार गया बन में सोना मिरा सदियों का  इस शहर में तो अब तक सिक्का भी नहीं बदला  बे-सम्त हवाओं ने हर लहर से साज़िश की  ख़्वाबों के जज़ीरे का नक़्शा भी नहीं बदला 

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