क़लम जब तुमको लिखती है

क़लम जब तुमको लिखती है,
दख़ल-अंदाजी 
फ़िर हम भी नहीं करते।

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कमबख्त नींद से 
मेरी लड़ाई चल रही है।
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मुझे आग़ोश में लेकर, 
तेरे किस्से 
सुनाती है मेरी रातें,
और 
मुझे ही सुलाना भूल जाती हैं

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