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कांग्रेस में लठमलठा जारी

कांग्रेस में लठमलठा जारी , जनता के परवाह के लिए वक़्त किसे !परिवारवाद को सलाम करते-करते  आज कांग्रेस अपने अंत के कगार पर है. इंतज़ार कर रही है कांग्रेस अपने नेता के समझदार होने का।  जो जितनी जी हज़ूरी करेगा आलाकमान की उतना हे हक़दार होगा मलाई खाने का यानी कि सत्ता की चौधर का। जिसकी उम्मीद और  इंतज़ार  में साइकिल और रथ का मैच होता रहता है।  अब तो जो कभी अपने हल्के में नहीं गए अपनी नज़दीकियों को ढाल बना अपना दावा ठोक रहे हैं।  वाह रे कांग्रेस ! न किसीपद की गरिमा रखी , न  जनता का सम्मान ,केवल जूतमपैज़ार वो भी चौधर के लिए। .. हर राज्य में यही कहानी। जनता सब देख रही है - उनकी सत्ता के लिये छ्टपटाहट ,अवसरवादिता और व्यक्तिगत लाभ की राजनीति।  

बची हुई टॉफीज़

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एक बच्चे की जब टॉफीज़ ख़त्म होने वाली होती है  तब वह आखिरी  टॉफी का पूरा स्वाद ले लेना चाहता है।  ज़िंदगी छोटी सी है , जीया भी खूब  है इसे बचे समय को व्यर्थ क्यूँ करूँ ? मेरे पैकेट में  भी अब  और अधिक टॉफीज़ नहीं  बची।  जीवन उपयोगी हो ,आत्मा भी जल्दी में रहती है  मैं बची हुई टॉफीज़ का  ,जो शायद सबसे ज्यादा स्वादिष्ट होंगी  क्यूँ न जी भर के स्वाद लूँ ? हमारी दो ज़िंदगी होती हैं ,और दूसरी तब शुरू होती है  जब महसूस होता है कि सिर्फ एक ही है  ...  -नीलम चौधरी    

वास्तविक स्वतन्त्रता

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वास्तविक स्वतन्त्रता क्या होती है यह वही जान सकता है जिसने गुलामी सही हो. जो लोग दूसरों को आज़ादी देने से मना करते हैं. वे खुद भी इसके योग्य नहीं हैं. स्वतंत्रता मनुष्य की वह शक्ति है जहाँ उसे मजबूर करके रोका न जाये बल्कि उसे वह करने देती है जो वह चाहता है. स्वतंत्रता बेहतर होने का एक अवसर है .

लहू में भीगे तमाम मौसम गवाही देंगे कि तुम खडे थे !

लहू में भीगे तमाम मौसम गवाही देंगे कि तुम खडे थे ! वफ़ा के रस्ते का हर मुसाफिर गवाही देगा कि तुम खडे थे ! सहर का सूरज गवाही देगा कि जब अधेंरो की कोख से निकलने वाले ये सोचते थे कि कोई जुगनू बचा नही हैं तो तुम खडे थे ! तुम्हारे ऑंखों के ताक़चों में जलती रौशनी ने नई मनाजिल हमें दिखाई तुम्हारे चेहरों की बढ़ती झुरिओं ने   वलवलों को नमुत बक्शी  तुम्हारे भाई, तुम्हारे बेटे, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी मॉंयें तुम्हारी मिट्टी का ज़र्रा ज़र्रा गवाही देगा कि तुम खडे थे ! हमारी धरती के जिस्म से जब हवस के मारे, सियाह जोंकों की तरह चिमटे तो तुम खडे थे ! तुम्हारी हिम्मत, तुम्हारी अज़मत और इस्तक़ामत तो वो हिमाला है कि जिसकी चोटी तक पँहुचना न पहले बस में रहा किसी के न आने वाले दिनों में होगा ! सो आने वाली तमाम नस्लें गवाही देंगी कि तुम खडे थे !!
"उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए"

अमीर क़ज़लबाश 1943-2003दिल्ली

कारगर कोई भी तदबीर न होने देगा क्या मुक़द्दर है कि ले जाएगा दर-दर मुझ को क्या बिगड़ता है मुस्कुराने में मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा नदी के पार उजाला दिखाई देता है मुझे ये ख़्वाब हमेशा दिखाई देता है तिरी निगाह ने हल्का सा नक़्श छोड़ा था मगर ये ज़ख़्म तो गहरा दिखाई देता है मैं क्या जानूँ घरों का हाल क्या है मैं सारी ज़िंदगी बाहर रहा हूँ नज़र में हर दुश्वारी रख ख़्वाबों में बेदारी रख दुनिया से झुक कर मत मिल रिश्तों में हमवारी रख सोच समझ कर बातें कर लफ़्ज़ों में तहदारी रख फ़ुटपाथों पर चैन से सो घर में शब-बेदारी रख तू भी सब जैसा बन जा बीच में दुनिया-दारी रख एक ख़बर है तेरे लिए दिल पर पत्थर भारी रख ख़ाली हाथ निकल घर से ज़ाद-ए-सफ़र हुश्यारी रख शेर सुना और भूका मर इस ख़िदमत को जारी रख शहर में सच बोलता फिरता हूँ मैं लोग ख़ाइफ़ हैं मिरे अंजाम से ज़मीं पर हो अपनी हिफ़ाज़त करो ख़ु...

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