तिरी खुशबु मेरे शौंक को हवा देती है ;-नीलम चौधरी
तिरी खुशबु मेरे शौंक को हवा देती है ;
न आ नजदीक मेरे ,
मुझे खुद पे ऐतबार नहीं ....
कहीं खो सा गया है अहसास मेरे होने का ;
वक्त की आज़माइश ने
बहुत कुरेदा मुझको...
चंद सवालों में उलझी जिंदगी
बिन जवाबों के
और उलझती जाए...
तेरी आँखों में मुमकिन है
कोई चिरागां हो
कभी मुझे भी जलने से गुरेज़ था...
छुपा लूँ मैं तुझको
लफ्जों में यूँ...
बना लूँ ग़ज़ल गुनगुनाता रहूँ...
खुद -परस्तगी मेरी आदत में है;
ज़िंदगी,
मैं तेरी शर्तों पे जियूँ कैसे ...
दिल तो धड़के है बेसबब इतना
उनसे कहो के
मेरी धड़कनों की जबां समझ लें .....
हसरतें हैं के कम नहीं होतीं ;
मुश्किलें हैं के दम नहीं लेतीं।
...नीलम चौधरी
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