HP and Gujarat ...Win or lose, we cannot write off Rahul Gandhi . . May be nothing to RGs abilities or acumen,but BJP errors and arrogance will give him an opening in coming time .. Modi is not invulnerable. politicians stick together only because of the Gandhi glue prom..ises them power. The greatest risk for the BJP is not that it will lose some states, but that it will win so many that it slips into the arrogant over-confidence of Vajpayee's "Shining India" campaign in 2004. That error enabled Sonia to win despite Vajpayee's high popularity. Rahul can hope that, one day, BJP arrogance will provide him another opening.
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राजा को बरी कर दिया जाता है, किंतु एक क्षेत्रीय दल के मुखिया को 10 साल की सजा सुना दी जाती है, जबकि सीबीआई की जो कोर्ट यह निर्णय सुना रही है, वह कह रही है कि इसमें कोई पैसे का लेनदेन नहीं हुआ, जिन लोगों की वजह से जेल हुई उन जेबीटी अध्यापकों की दो-दो एसीपी तक भी लग चुकी, जबकि जिन पर 1 लाख 76 हजार करोड़ के करप्शन का सीएजी आरोप लगाती है, वे बरी हो जाते हैं, देश मे न्याय नाम की कोई चीज नहीं है, या तो CAG झूठा है या वो सुप्रीम कोर्ट के जज साहिब जिन्होंने 122 लायसेंस रद्द किए थे... किसी ने सुनन्दा पुष्कर को नही मारा। किसी ने आरूशी को नही मारा। "भाई" ने काले हिरण को नही मारा। "भाई" ने फुटपाथ पर सोने वालों को नही मारा। और अब ... किसी ने 2G घोटाला भी नही किया, ऐसे फैसले ही हमारे विश्वास को मजबूत करते हैं की पैसा है तो दुनिया अपने जेब मे है चाहे जिसको मन करे मारो, जिसका मन हो बलात्कार करो, चाहे देश ही क्यों न लूट डालो कुछ नहीं होगा।। प्रद्युम्न मर्डर केस में 16साल का आरोपी #बालिग है? लेकिन निर्भया केस में साढ़े 17साल का #अफरोज #नाबालिग? क्यों? Raja is acquitted ...
Clinical Establishments (Registration and Regulation). Act, 2010
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Clinical Establishments ( Registration and Regulation ). Act , 2010 . has taken effect in the four States namely, Arunachal Pradesh, Himachal Pradesh, Mizoram, Sikkim, and all Union Territories except the NCT of Delhi since 1st March, 2012 vide Gazette notification dated 28th February, 2012. The States of Uttar Pradesh, Uttarakhand, Rajasthan, Bihar, Jharkhand and Assam have adopted the Act under clause (1) of article 252 of the Constitution. Haryana government must amend certain minimum standards of facilities and services rules before adopting/enacting this act ...as per looking into the practical difficulties confronted by private hospitals and clinics in keeping in view the better services (than govt. hospitals) provided by this sector in maintaining health of common man in Haryana. We must prioritize medical services in neighborhood than going to big corporate running hosp...
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प्रदीप मलिक --------- एनआरएचएम के लिए केंद्र पहले 85 प्रतिशत ग्रांट देता था -लेकिन, अब केंद्र से 60 प्रतिशत ही ग्रांट आती है, 40 फीसदी राज्यों को स्वयं वहन करना होता है -एनआरएचएम को इंपलाइमेंट एक्सचेंज बना दिया था पिछली सरकार ने -वैसे एनआरएचएम की स्थापना इसलिए की गई थी कि जहां पर प्रदेश का स्वास्थ्य विभा ग मुलभूत सुविधाएं नहीं दे पाए वहां पर एनआरएचएम इस गैप को पूरा कर सके -बार-बार अब एनआरएचएम के कर्मचारी जा रहे हैं स्ट्राइक पर ----- चंडीगढ़। नेशनल रूरल हैल्थ मिशन (एनआरएचएम) की स्थापना 2005 में इसलिए की गई थी ताकि जहां पर राज्यों का हैल्थ डिपार्टमेंट लोगों को स्वास्थ्य संबंधी मूल•ाूत सुविधाएं नहीं दे सकता, वहां पर एनआरएचएम इस गैप को पूरा कर सकेगा। हैरानी होती है कि कई राज्यों ने एनआरएचएम को इमंलाइपमेंट एक्सचेंज बनाया हुआ है, जिसमें हरियाणा भी शामिल है। हालांकि, अब एनआरएचएम का नाम एनएचएम हो गया, पहले जहां एनएचएम को 85 प्रतिशत ग्रांट केंद्र सरकार देती थी और राज्यों को केवल 15 फीसदी ही देना होता था। उस चक्कर में यहां सिफारिशी लोगों की बहुत भर्तियां की हुई है। पहले 2005 में...
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द्वारा - प्रदीप डबास, कार्यकारी संपादक, जनता टीवी पढ़ी लिखी पंचायतें- एक बेहतर भविष्य की और एक बड़ा कदम साल 2015 में हरियाणा की बीजेपी सरकार की ओर से सूबे में पंच और सरपंचों के लिए पढ़े लिखे होने की अनिवार्यिता को निधार्ति किया गया तो विरोध भी हुआ। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने इसे संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन मानने से इंकार कर दिया और विरोध खारिज हो गया। ये एक ऐतिहासिक फैसला हम कह सकते हैं। भले ही निचले स्तर पर ही सही कहीं से तो सुधार शुरू होना जरूरी था। हमारे खादीधारी भले ही मानने को तैयार ना हों लेकिन कोर्टों को हकीकत मालूम है। वहां कौरी राजनीति नहीं चलती। दलील दी गई कि ग्रामीण क्षेत्रों में 83 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 67 फीसदी महिलाएं निरक्षर हैं ऐसे में वो अपने चुनाव लड़ने के अधिकारों से वंचित रह जाएंगी। कोर्ट कहता है कि ये ठीक नहीं जनप्रतिनिधि तो वो ही होना चाहिए जो पढ़ा लिखा हो। खैर हरियाणा में इस वक्त सभी पंचायतें पढ़ी लिखी हैं। एक बार विरोध हुआ लेकिन इसके बेहतर परिणाम देखते हुए सरकार एक कदम आगे बढ़ रही है। हरिय...
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जनसेवा हमारे नेताओं के चरित्र में कम उनके भाषणो में ज्यादा नजर आती है। आजकल के राजनितिक वातावरण में इलेक्शन जीतना महज़ एक टेक्निकल गेम है जिसके नियम भी स्थाई नहीं हैं। विजयी उम्मीदवार को अच्छा लीडर या एडमिनिस्ट्रेटर मान लेना सिर्फ एक भूल है। कईं बार तो वह स्वयं इतना काबिल नहीं होता के स्वयं निर्यण ले सके.... दूसरा के,बाकि लोग उसे दबाव में रखते हैं और सोचने और बोलने नहीं देते। या फिर आम जनता को confusion में रख कर अपने हितों को साधने में लगे रहते हैं। हमारी असल ज़िंदगी को बेहतर बनाने के बजाय --- झूठे विवाद ,हंगामा और बरगलाने वाली बातें हो रही हैं। ध्यान बटाओ ,समस्याएं पैदा करो.. हल देखा जायेगा ---- इस प्रकार के वातावरण में सोशल रिफॉर्म्स की बात करना एक ड्रामा सा लगता है। मौजूदा पोलिटिकल सिस्टम में बदलाव लाये किसी बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है.....
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नहीं मानी दिल्ली, हवा फिर हुई धुंआ-धुंआ सुना है कल पटाखे बंद थे, कौन सी दिल्ली में बंद थे? पटाखों पर बैन भी बिलकुल वैसा साबित हुआ, जैसे पंचकूला में धारा 144 हुई थी कल रात माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को बाज़ारों में बिकते हुए और धुआं होते हुए देखा दिवाली के बाद शुक्रवार की सुबह आसमान में प्रदूषण भरी धुंध साफ देखी जा सकती है. आंकड़ों की भी बात करें तो बीते साल दिवाली से प्रदूषण कम तो हुआ है लेकिन इसमें बड़ी गिरावट नहीं है. उम्मीद थी कि इस रोक के बाद लोग पटाखे नहीं फो़ड़ेंगे और दिवाली की सुबह धुंध और प्रदूषण भरी नहीं होगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े और सुबह वायु प्रदूषण ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया. हमे प्रदूषण पर काम करना चाहिए न कि राजनीति संविधान कोर्ट के फैसले का सम्मान करना सबका धर्म है लेकिन अपने जोश में लोग कानून का उल्लंघन कर रहे हैं. किसी भी देश की कोर्ट कानून से बड़ा कोई नही है क्योंकि देश संविधान कानून से चलता है मानसिक गुलामी से नहीं सुप्रीम कोर्ट के पटाखों पर एकतरफा बैन लगाने के बजा...
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टूटते रिश्ते कहतें हैं प्रेम अँधा होता है और विवाह आँखे खोलता है। आधुनिक जोड़े आज भी बिना एक दूसरे की अच्छी तरह जाने विवाह जैसा निर्णय जल्दबाज़ी में ले लेते हैं। फिर होता क्या है कि कुछ ही समय में ही अलग रहने का रास्ता तलाशने लगते हैं। स्त्रियां आज अधिक पढ़ी लिखी हैं , अधिक आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं। तो विवाह की सफलता अधिकतर इस बात पर निर्भर करती हे कि एक दूसरे को, उनके माता -पिता को ,एक दूसरे की आदतों को ,जॉब्स को कौन कितना और कब तक बदार्शत कर सकता है। स्त्रियां भी मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का होंसला रखती हैं और यदि अलग रहने की नौबत आये भी तो घबराती नही। विवाह और तलाक़ आज दोनों ही आम सी बात हैं। एक सुखद विवाह किसी भी जोड़े की मानसिक और शारीरिक सेहत को भी बनाए रखता है। बढ़ते बच्चों के लिये भी खुश परिवार उन्हे मानसिक,शारीरिक , शिक्षा और सामाजिक समस्याओं से बचाता है। अलग रहना या तलाक़ लेना भावनात्मक रूप से तकलीफ़ देह होता है ,फिर भी सम्बन्ध विछेद को एक सकारातमक तरीके से लेना चाहिए। अपने कम्युनिकेशन को बनाये रखें और बच्...
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द्वारा :- प्रदीप कुमार मलिक, पत्रकार चंडीगढ़: हरियाणा के गावों की गलियों में आईएसआई मार्का ही टाइलें का सच क्या है ? एक जनवरी से आईएसआई मार्का ही टाइलें लगेंगी लेकिन पहले बगैर आईएसआई ही चल रही हैं। गांवों की गलियां पक्की करने के लिए टाइलें और पेवर ब्लॉक के मामले में पंचायत विभाग का हैरतगेंज फैसलाबी लिया गया। पंचायत विभाग का यह नोटिफिकेशन 7 जून को जारी हो गया था। हांलाकि सरकार ने आईएसआई मार्का की टाइलें और पेवर ब्लॉक लगाने का फैसला तो ठीक लिया है, लेकिन यह फैसला एक जनवरी 2018 से ही क्यों लागू किया जा रहा है, पहले से क्यों नहीं? जबकि पंचायतों को वित्तीय शक्तियां भी अधिक दी गई हैं , अब पंचायतें 10 लाख की बजाए 20 लाख तक के कार्य करवा सकेंगी। प्रभाव - पंचायत विभाग से जुड़े रहे पूर्व इंजीनियरों के मुताबिक क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिए। ज...
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किसान १. किसानों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। २. किसानों के बच्चों की शिक्षा के स्तर को प्राथिमिकता देनी चाहिए। ३. किसानों को भी न्यूनतम वेतन जैसी सहायता मिले ,इस पर विचार होना चाहिए। ४. कृषि को फायदे का व्यवासय बनाने के लिये एक और हरित क्रांति जैसा कदम उठाना चाहिए। हमारी फोरम इन विषयों पर विचार करे और सरकार और किसानों के बीच प्रभावकारी भूमिका निभाए। एकता :- हमारी सारी सारी छोटी -बड़ी महा सभाएं और आरक्षण समितिएं एक हो जाएं। युवावर्ग:- १ युवाओं की शक्ति को सही मार्गदर्शन दिया जाये। २ युवावर्ग के लिया रोजगार के अवसर युद्ध-स्तर पर बढ़ाए जाएं। ३ नैतिक -मूल्यों में क्रन्तिकारी सुधारों की आवकश्यता पर जोर देना चाहिए। ४ पुरुष-वर्ग को महिला-वर्ग के प्रति अधिक संवेदनशील और सम्मानजनक रवैये के लिए जागरूक किया जाना चाहिए। हमारी फोरम इन विषयों पर विचार करे और सरकार और युवाओं के बीच प्रभावकारी भूमिका निभाए।
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Few facts to be clarified by the Chairman of BC commission Haryana / Govt. of Haryana सितम्बर 1 ,2017 - आर्डर pronounced only-लिखा हुआ अवेलेबल नहीं है। सर्वे हरयाणा पिछड़ा आयोग करेगा पता -SCO 41-43, sec 17A Chandigarh सर्वे कैसे होगा कोई गाइड लाइन कोर्ट ने नहीं दी चेयरमैन वही है या नया है कोई ?no update on webstie., still showing- Justice KC Gupta.जिनकी पिछले रिपोर्ट पर रिजर्वेशन ड्राप हुआ था सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान में धौलपुर और भरतपुर में कोर्ट के आर्डर से फील्ड सर्वे से डाटा कलेक्ट हुआ था, जनुअरी 2017 से रिपोर्ट दी जून 2017 में नोटिफिकेशन हुए 23 अगस्त में हरयाणा पिछड़ा आयोग कैसे सर्वे करेगा ? फील्ड सर्वे या डाटा जो पहिले से ऑफिसेस में है ? फील्ड सर्वे है तो ऑनलाइन या मैन्युअल या दोनों साथ साथ ? questionaire यानि प्र्शन कैसे होंगे ? आज के हालत पर या 2011 के सेन्सस के आधार पर ? अगर डाटा सिर्फ अलग अलग ऑफिसेस से लिया गया तो किसानों कीहालत कैसे पता चलेगी ? बेमोसम बारिश और सूखे ने उनकी कमर तोड़ रख...
तिरी खुशबु मेरे शौंक को हवा देती है ;-नीलम चौधरी
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तिरी खुशबु मेरे शौंक को हवा देती है ; न आ नजदीक मेरे , मुझे खुद पे ऐतबार नहीं .... कहीं खो सा गया है अहसास मेरे होने का ; वक्त की आज़माइश ने बहुत कुरेदा मुझको... चंद सवालों में उलझी जिंदगी बिन जवाबों के और उलझती जाए... तेरी आँखों में मुमकिन है कोई चिरागां हो कभी मुझे भी जलने से गुरेज़ था... छुपा लूँ मैं तुझको लफ्जों में यूँ... बना लूँ ग़ज़ल गुनगुनाता रहूँ... खुद -परस्तगी मेरी आदत में है; ज़िंदगी, मैं तेरी शर्तों पे जियूँ कैसे ... दिल तो धड़के है बेसबब इतना उनसे कहो के मेरी धड़कनों की जबां समझ लें ..... हसरतें हैं के कम नहीं होतीं ; मुश्किलें हैं के दम नहीं लेतीं। ...नीलम चौधरी
क्यूँ ठहर जाऊँ कहीं.... ज़माने लगे हैं ख़ुद को बदलने में ...neelam chaudhary
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अहमद फ़राज़
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तुझ से बिछड़ कर भी ज़िंदा था मर मर कर ये ज़हर पिया है चुप रहना आसान नहीं था बरसों दिल का ख़ून किया है जो कुछ गुज़री जैसी गुज़री तुझ को कब इल्ज़ाम दिया है अपने हाल पे ख़ुद रोया हूँ ख़ुद ही अपना चाक सिया है कितनी जाँकाही से मैं ने तुझ को दिल से महव किया है सन्नाटे की झील में तू ने फिर क्यूँ पत्थर फेंक दिया है
उसूलों पे जहाँ आँच आये / वसीम बरेलवी
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उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
तलाश अभी खुद की बाकी है....... unknown
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खुद में खुद की तलाश अभी बाकी है..... ढूंढ़ता रहता हूँ खुद को खुद ही के सायें में... जब से तलाश ज़माने में करनी छोड़ी है खुद से सवाल करना बाकी है...... जवाब अभी खुद से ढूंढने कई बाकी हैं .. भुलाने के लिए दर्द को. ... झूठ बहुत बोले मैंने .. ख़ुशी की खातिर अभी कुछ सच बोलना बाकी है लड़खड़ाये कदम .. राहे जिंदगी में तो क्या ? मेरे कदमों में लय-ताल अभी बाकी है... हर सच का निकला इक और चेहरा... ये चेहरा वो चेहरा ....... हर चेहरे पे एक और चेहरा......... इक सच्चे चेहरे की तलाश अभी बाक़ी है.... अब तलाश चेहरों की छोड़...... दिल से रूबरू होना है सामना खुद की नज़रों से होना भी अभी बाकी है देखा है मैंने खुद को इस भीड़ की नजर से ...अब तक जरा सवांर लूं खुद को फुरसत से तलाश अभी खुद की बाकी है....... ----unknown .
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़ सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं सुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है सो उसको सुरमाफ़रोश आह भर के देखते हैं सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं ...
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत[1] का भरम रख तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ पहले से मरासिम[2] न सही फिर भी कभी तो रस्मे-रहे-दुनिया[3] ही निभाने के लिए आ किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया[4] से भी महरूम [5] ऐ राहत-ऐ-जाँ[6] मुझको रुलाने के लिए आ अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम[7] को तुझ से है उम्मीदें ये आखिरी शम्अ भी बुझाने के लिए आ शब्दार्थ ऊपर जायें ↑ प्रेम के गर्व ऊपर जायें ↑ प्रेम व्यवहार ऊपर जायें ↑ सांसारिक शिष्टाचार ऊपर जायें ↑ रोने के स्वाद ऊपर जायें ↑ वंचित ऊपर जायें ↑ प्राणाधार ऊपर जायें ↑ किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन
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कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है 'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो
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ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब आँखों के सहरा नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में कुछ याद जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते उश्शाक़ के मानिंद कई अहल-ए-हवस भी पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते
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शोअ'ला था जल बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो मैं कब का जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया अब तुम तो ज़िंदगी की दुआएँ मुझे न दो ये भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी ऐ ख़ुसरवान-ए-शहर क़बाएँ मुझे न दो ऐसा न हो कभी कि पलट कर न आ सकूँ हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो कब मुझ को ए'तिराफ़-ए-मोहब्बत न था 'फ़राज़' कब मैं ने ये कहा है सज़ाएँ मुझे न दो
Tumhare Shaher Ka Mausam Barha Suhana Lagge-Gulshan Aara Syed
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Tumhare Shaher Ka Mausam, Munni Begum Tumhare Shaher Ka Mausam Barha Suhana Lagge.. Main Eik Shaam Chura Loon Agar Bura Na Lagge.. Tumhare Bas Mein Agar Ho To Bhul Jao Mujye.. Tumhe Bhulane Mein Shayad Mujye Zamana Lagge. . Humare Pyaar Se Jalne Laggi Hai Eik Duniya.. Duwa Karro Kissi Dushman Ki Bad Duwa Na Lagge.. Main Eik Shaam Chura Loon Agar Burra Na Lagge.. Tumhare Shaher Ka Mausam Barra Suhana Lagge.. Jo Dub Na Hai To Itne Sakoon Se Dubbo.. Ke Ass Paas Ki Lehroon Ko Bhi Pata Na Lagge.. Kuch Is Aadha Se Mere Saath Bewafai Kar.. Ke Tere Baad Mujye Koi Bewafa Na Lagge.. Tumhare Shehar Ka Mausam Barra Suhana Lagge... Main Eik Shaam Chura Loon Agar Burra Na Lagge...