जनसेवा हमारे नेताओं के चरित्र में कम उनके भाषणो में ज्यादा  नजर आती है। आजकल के राजनितिक वातावरण में इलेक्शन जीतना महज़ एक टेक्निकल गेम है जिसके नियम भी स्थाई नहीं हैं। विजयी उम्मीदवार को अच्छा लीडर या एडमिनिस्ट्रेटर मान लेना सिर्फ एक भूल है। कईं बार तो वह स्वयं इतना काबिल नहीं होता के स्वयं निर्यण ले सके....    दूसरा के,बाकि लोग उसे दबाव में रखते हैं और सोचने और बोलने नहीं देते। या फिर  आम जनता को confusion  में रख कर अपने हितों को साधने में लगे रहते हैं।   हमारी असल ज़िंदगी को बेहतर बनाने के बजाय --- झूठे विवाद ,हंगामा और बरगलाने वाली बातें हो रही हैं। ध्यान बटाओ ,समस्याएं पैदा करो..  हल देखा जायेगा ---- इस प्रकार के वातावरण में सोशल रिफॉर्म्स की बात करना एक ड्रामा सा लगता है। मौजूदा पोलिटिकल  सिस्टम में बदलाव लाये किसी बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है..... 

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