कब आएगा भाखड़ा का नीला-नीला पानी हरियाणा में ?
-इस समय हरियाणा के हालत बेहद चिंताजनक
- 50 प्रतिशत सिंचाई टयूबवेल
-17 प्रतिशत बरसात के पानी से
-33 प्रतिशत सिंचाई नहरी पानी से होती है -नीला-नीला पानी आ गया तो लहलाएगी खेती
-पंजाब कानून की भाषा मानता तो 15 जनवरी 2002 के बाद हरियाणा को एसवाईएल का पानी मिल जाता। उसके बाद 4 जून 2004 को भी सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल का पानी तुरंत देने के पंजाब को आदेश दिए हुए हैं।
पंजाब ने कभी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की परवाह नहीं की, तब कैप्टन अमरेंद्र सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री थे उन्होंने 12 जुलाई 2004 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विधानभा में पंजाब टर्मिनेशन आॅफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 पास करवा दिया। उसके बाद से यह एक्ट प्रेजिडेंसियल रिफरेंस में पड़ा हुआ था, जिस पर 10 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय दी है जिसे अब पंजाब टर्मिनेशन आॅफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 पूरी तरह से गैर संवैधानिक हो गया और सुप्रीम कोर्ट का 15 जनवरी 2002 और 4 जून 2004 का एसवाईएल का हरियाणा के हक में आया फैसला लागू हो गया।
अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की जिम्मेदारी बनती है, वह हरियाणा को उसके हक का पानी दिलवाए, क्योंकि पीएम मोदी हरियाणा को अपना दूसरा घर मानते हैं।
एसवाईएल में हरियाणा का 3.5 एमएएफ हिस्सा बनता है और अभी तक हरियाणा को 1.6 एमएएफ पानी मिल रहा है तथा 1.9 एमएएफ पानी के लिए हरियाणा इतने सालों से लड़ाई लड़ रहा है।
एसवाईएल के मामले में जो प्रेजिडेंसियल रिफरेंस 12 साल से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लंबित था, हरियाणा की पूर्व कांग्रेस सरकार ने 17 बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा तो खटखटाया, यहां तक की देश के नामचीन वकील भी कोर्ट में खड़े किए, लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट से उसके ही दिए हुए पुराने फैसले पर राय नहीं दिलवा सके। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हरियाणा को आस बंधी है कि अब हरियाणा को भाखड़ा का नीला-नीला पानी मिलेगा।
यहां यह बता दें कि एसवाईएल नहर 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में है। इस नहर का 90 प्रतिशत निर्माण कार्य हो चुका था और रोपड़ के पास करीब 10 किलोमीटर में इस नहर का निर्माण कार्य बाकी है।लेकिन अब जब से पंजाब की पूर्व बादल सरकार ने नहर की अधिग्रहण जमीन का जो डीनोटिफिकेशन किया है, उसके बाद दोबारा से इस नहर का निर्माण कार्य किया जाएगा।
बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के सामने इस समय भारी संकट खड़ा है, क्योंकि पंजाब में कांग्रेस और बीजेपी इस मामले में वहां के लोगों के साथ हैं। इनेलो ने एसवाईएल के मामले में शिरोमणी अकाली दल और प्रकाश सिंह बादल परिवार से अपने राजनीतिक रिश्ते मार्च 2017 में ही पूरी तरह से खत्म कर दिए थे।
एसवाईएल के मामले में अब तक जितने भी अवार्ड हुए और जो भी समझौते हुए उसको पंजाब सरकार ने नहीं माना।
वैसे पंजाब में जहां से हरियाणा, राजस्थान के हिस्से का पानी छोड़ा जाता है, उन हैडवर्क्स का कब्जा पंजाब के पास है। जबकि नियमों के मुताबिक हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचलप्रदेश और दिल्ली के पानी का बंटवारा भाखड़ा ब्यास मैनजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) करता है तो इन हैडवर्क्स का नियंत्रण भी बीबीएमबी के पास होना चाहिए। यहां यह बता दें कि 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के साथ ही हरियाणा को यह विवाद विरासत में मिला था। अब देखना यह होगा कि इस मामले में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कितनी जल्दी लागू करवाती है।
हरियाणा में करीब 40 लाख हैक्टयेर कृषि योग्य जमीन है,
33 प्रतिशत भूमि की सिंचाई नहरी पानी से,
50 प्रतिशत की सिंचाई टयूबवलों के माध्यम से तथा
17 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि की सिंचाई बरसात के पानी से होती है।
जबकि हरियाणा में 30 लाख हैक्टयेर भूमि के नहरों का जाल बिछा हुआ है, लेकिन पानी नहीं होने से प्रदेश की नहरें सुखी पड़ी रहती है। यदि एसवाईएल का पानी हरियाणा को मिलता है तो प्रदेश की धरती सोना उगलेगी और उस क्षेत्र में भी पानी पहुंच जाएगी, जहां के लोगों के लिए नहरी पानी अभी तक एक सपना है।
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