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टूटते रिश्ते

टूटते रिश्ते by- Adv.Neelam Chaudhary कहतें हैं प्रेम अँधा होता है और विवाह आँखे खोलता है। आधुनिक जोड़े आज भी बिना एक दूसरे की अच्छी तरह जाने विवाह जैसा निर्णय जल्दबाज़ी में ले लेते हैं। फिर होता क्या है कि कुछ ही समय में ही अलग रहने का रास्ता तलाशने लगते हैं। स्त्रियां आज अधिक पढ़ी लिखी हैं , अधिक आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं। तो विवाह की सफलता अधिकतर इस बात पर निर्भर करती हे कि एक दूसरे को, उनके माता -पिता को ,एक दूसरे की आदतों को ,जॉब्स को कौन कितना और कब तक बदार्शत कर स कता है। स्त्रियां भी मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का होंसला रखती हैं और यदि अलग रहने की नौबत आये भी तो घबराती नही। विवाह और तलाक़ आज दोनों ही आम सी बात हैं। एक सुखद विवाह किसी भी जोड़े की मानसिक और शारीरिक सेहत को भी बनाए रखता है। बढ़ते बच्चों के लिये भी खुश परिवार उन्हे मानसिक,शारीरिक , शिक्षा और सामाजिक समस्याओं से बचाता है। अलग रहना या तलाक़ लेना भावनात्मक रूप से तकलीफ़ देह होता है ,फिर भी सम्बन्ध विछेद को एक सकारातमक तरीके से लेना चाहिए। अपने कम्युनिकेशन को बनाये रखें और बच्चों को जीवन की व...

नहर की मांग को मुद्दा बनाकर किसानों से मांगे गए वोट, पानी नहीं हुआ नसीब- मुकेश राजपूत , एडिटर ,न्यूज़ 18 हरियाणा

नहर की मांग को मुद्दा बनाकर किसानों से मांगे गए वोट, पानी नहीं हुआ नसीब प्यासे हरियाणा का गला तर करने के इरादे से बरसों पहले अस्तित्व में आई अधूरी पड़ी दादूपुर नलवी नहर का मुद्दा इन दिनों हरियाणा में छाया हुआ. कई चुनावों में इस नहर की मांग को मुद्दा बनाकर किसानों से वोट मांगे गए लेकिन किसानों को नहर का पानी नसीब नहीं हुआ. 1980 में किसानों ने नहर के लिए आवाज की बुलंद 1980 में कुरुक्षेत्र और अंबाला के किसानों ने नहर के लिए आवाज़ बुलंद की. कई चुनावों में इस मांग को मुद्दा बनाया गया. 1987 में 137 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया गया और उस वक्त दादूपुर-नलवी नहर परियोजना का बजट 45 करोड़ रुपये रखा गया. 2004 में रखी गई नहर की नींव साल 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने परियोजना की नींव रखी. 2005 में सत्ता बदली और ज़मीन अधिग्रहण का काम शुरू हुआ. 50 किलोमीटर लंबी नहर के लिए अंबाला कुरुक्षेत्र यमुनानगर के 225 गांवों की 860 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित की गई. 2006 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शिलान्यास किया और नहर की खुदाई शुरू हुई. 2007 में किसानों ने जमीन देने का किया विरोध 2007 में कुछ...

किसान कंपनियां

कोई भी देश सरकारी नौकरियों के भरोसे आगे नहीं बढ़ सकता, बल्कि वही देश आगे बढ़ें हैं, जिन्होंने अपने युवाओं को रोजगार करने के लिए प्रेरित किया है। क्योंकि सभी को सरकारी नौकरी देना किसी भी सरकार के बस में नहीं है। किसान कंपनियां ही युवाओं के भविष्य को उज्जवल बना सकती हैं। क्योंकि किसानों जब तक बाजार का हिस्सा नहीं बनेगा, तब तक उसे उसकी फसल की बढ़िया कीमत कोई सरकार नहीं दे सकती। सरकार अगर फसलों की कीमत बढ़ाएगी तो महंगाई एकदम से आसमान छूने लगेगी। तब गरीबों पर ज्यादा मार पड़ जाएगी।  जबकि किसान कंपनियों के माध्यम से वह रास्ता निकलता है, जहां न महंगाई बढ़ेगी और उपभोक्ता को भी बिना मिलावट का शुद्ध भोजन उपलब्ध हो सकेगा। किसान कंपनियां ही इस देश के भविष्य का निर्माण कर सकेंगी। किसान मिलकर बनाएंगे अपना भविष्य सरकार और विपक्ष के बीच किसान फुटबाल वर्षों से बना हुआ है। सरकारों के भरोसे लंबा समय बीत गया, परंतु किसान खुशहाल नहीं हुए. मीडिया, सरकार और विपक्ष के मुद्दों में किसान भले ही बना रहता हो, पर किसान को कोई फायदा नहीं हो रहा। ऐसे में किसानों ने ही अपने हालात बदलने का निर्णय लिया और नए प्रयो...
कौन जाने, अलाउदीन खिलजी ने पद्मावती को आइने में देखा था या नहीं, पर फ़िल्म पर छिड़े विवाद ने देश की राजनीति और समाज का आइना अवश्य दिखा दिया है. राजस्थान की मुख्यमन्त्री वसुंधरा राजे सिंधिया कहती है मैं ठाकुर की बेटी हूँ ,जाट की बहू हूँ और गुज्जर की समधन हूँ. बिना बदलाव के फ़िल्म रिलीज नहीं होगी. वहीं, फ़िल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी तमाशा देख रहे हैं. जसवंत झावेरी ने पद्मिनी की कहानी पर सन 1961 में सबसे पहले 'जय चित्तौड़' फ़िल्म बनाई थी. लेकिन उसका विरोध नहीं हुआ था और यह फ़िल्म भी पूरी तरह फ्लॉप रही थी. फिर , 1963 में तमिल निर्देशक चित्रापू नारायण मूर्ति ने रानी पद्मिनी की कहानी पर "चित्तौड़ रानी पद्मिनी" फ़िल्म बनायी थी. इस फ़िल्म में मशहूर अभिनेत्री वैजयंती माला ने रानी पद्मिनी का क़िरदार निभाया था. यह फ़िल्म भी पूरी तरह फ्लॉप रही. उसके बाद 1964 में पद्मिनी पर हिंदी में 'महारानी पद्मिनी'. फ़िल्म बनी, इस फ़िल्म का निर्देशन जसवंत झावेरी ने ही किया था और अनिता गुहा ने रानी पद्मिनी का क़िरदार निभाया था. लेकिन यह भी पूरी तरह फ्लॉप रही.

water dispute between Haryana and Punjab is years old, now Rajasthan

Haryana accepts every decision, but no one pays attention to its needs ….  Now Rajasthan demanding that it is not receiving sufficient water  In Haryana fields are dry even then it is quenching thirst of Delhi.  In Haryana the level of water table is continuously decreasing and consequently for irrigation, dependence on tube wells and rain is increasing. Chandigarh- water dispute between Haryana and Punjab is years old, now Rajasthan has also entered in this dispute by stating that it’s not getting sufficient water as per accord from Haryana .Surprisingly, as per previous accords Haryana has followed each and every decision but neighboring states had never been ready to act upon their parts. - It’s worth to be mentioned here that in Haryana Agricultural land is 40 lakhs hectare Irrigated by • Canal -33% • Tube wells -50% • Rainfall -17% Water received by Haryana-  From Bhakhra Management Board -9500 Cusec  From western Yamuna Cananl (WJC)-2500 Cusec  (From Hathini kund barrag...

Haryana State AIDS Control Society , Centre has reduced their budget

In Haryana, there is continuous rise in the number of HIV patients, unfortunately the awareness programs as were conducted in past are not being organized these days. No one is paying any attention to it. According to Haryana State AIDS Control Society , Centre has reduced their budget and whatever is being received 72% of that is spent on salary of the staff only, remaining amount is not enough to fulfill other formalities. On 1st December , however some programs are do held in the name of “World Aids Day”. As per the information from reliable resources in the year 2016-17, when blood test of 4, 72,659 general patients was conducted 4328 were found HIV positive. During this period 3, 73,293 pregnant women were also tested and 304 of them were found HIV positive. It’s obvious that newly born babies of these women would have been infected with HIV. Now the 2017-18 Financial year is going on so, till September 2017 the blood samples of 2, 23,643 general patients has been taken and ...

पुलिस का राजनीतिकरण नहीं हो तो क्राइम घट सकता है!

पुलिस का राजनीतिकरण नहीं हो तो क्राइम घट सकता है! -एनसीआरबी की 2016 की जब से रिपोर्ट आई है उसके बाद विपक्ष के निशाने पर सरकार आई हुई है। कई केसों में हरियाणा में अपराध की दर बिहार, यूपी जैसे राज्यों से भी बदतर है। हरियाणा में औसतन हर दिन 10 अपहरण, 3 हत्या, 3 बलात्कार, 43 आॅटो चोरी और 60 चोरी के मामले दर्ज हो रहे हैं, यह चिंता की बात है। लेकिन, जिस तरह से पुलिस का राजनीतिकरण हुआ है उससे इन केसों की संख्या में कैसे कमी आए यह विचारणीय विषय है। पूर्व के समय से रिवाज चला आ रहा है कि हरियाणा पुलिस के डीजीपी को सरकार के स्तर से एक लिस्ट आएगी उसको उसे अमली जामा पहनाना होता है। पहले भी सिफारशी लोगों को सरकार पोस्टिंग देती रहती थी। सीनियरों को छोड़कर जूनियर को डीजपी तक बना दिया करते। हालांकि, इस सरकार में सरकार की दखलअंदाजी कम है, लेकिन पूरी तरह से दखलअंदाजी खत्म हो गई हो यह भी नहीं कहा जा सकता। किस जिले में कौन एसपी होगा कौन डीएसपी होगा यह सरकार के स्तर पर तय होता है। जबकि इसके लिए डीजीपी को फ्री हैंड दिया जाना चाहिए। अब कोई भी एसपी अपने हिसाब से जिले में काम करना शुरू करे तो उसकी ट्रां...
पढ़ी लिखी पंचायतें- एक बेहतर भविष्य की और एक बड़ा कदम साल 2015 में हरियाणा की बीजेपी सरकार की ओर से सूबे में पंच और सरपंचों के लिए पढ़े लिखे होने की अनिवार्यिता को निधार्ति किया गया तो विरोध भी हुआ। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने इसे संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन मानने से इंकार कर दिया और विरोध खारिज हो गया। ये एक ऐतिहासिक फैसला हम कह सकते हैं। भले ही निचले स्तर पर ही सही कहीं से तो सुधार शुरू होना जरूरी था। हमारे खादीधारी भले ही मानने को तैयार ना हों लेकिन कोर्टों को हकीकत मालूम है। वहां कौरी राजनीति नहीं चलती। दलील दी गई कि ग्रामीण क्षेत्रों में 83 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 67 फीसदी महिलाएं निरक्षर हैं ऐसे में वो अपने चुनाव लड़ने के अधिकारों से वंचित रह जाएंगी। कोर्ट कहता है कि ये ठीक नहीं जनप्रतिनिधि तो वो ही होना चाहिए जो पढ़ा लिखा हो। खैर हरियाणा में इस वक्त सभी पंचायतें पढ़ी लिखी हैं। एक बार विरोध हुआ लेकिन इसके बेहतर परिणाम देखते हुए सरकार एक कदम आगे बढ़ रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर ...

राजपूत समाज हर हाल में चाहता है कि पद्मावती फिल्म

राजपूत समाज हर हाल में चाहता है कि पद्मावती फिल्म देश की किसी भी स्क्रीन पर ना दिखे। बात सही भी लगती है क्योंकि अगर किसी चलचित्र, नाटक, पुस्तक या वाक्य से किसी की भावनाएं आहत होती हैं तो उससे बचना भी चाहिए। यहां तककि जयपुर में तो एक शख्स ने इस फिल्म के विरोध में खुद को फांसी लगाकर जान भी दे दी। ये विरोध लगातार बढ़ भी रहा है। राजपूत समाज का कहना है कि रानी पद्मावती का घूमर नृत्य दिखाया जाना उनके समाज की अस्मिता के साथ खिलवाड़ ह ै। यहां विरोध करने वालों में ज्यादातर लोग तीस साल से कम उम्र के हैं। आप सोच रहे होंगे किसी चीज के विरोध और उम्र का क्या संबंध हो सकता है। जी हां रानी पद्मावती का इतिहास तो सदियों पुराना है लेकिन शायद ये विरोध करने वाले 30-32 साल पहले तक का इतिहास नहीं जानते। उन्हें ये भी पता होना चाहिए संजय लीला भंसाली को पद्मावती फिल्म को लेकर आइडिया कहां से आया होगा। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1946 में एक पुस्तक लिखी डिस्कवरी ऑफ इंडिया यानि भारत एक खोज। इसमें भारत वर्ष के तमाम गौरवमय इतिहास की जानकारी है। 1988 में इसी पुस्तक पर आधारित एक टीवी सीरियल भी बना था। इस सीरियल के 26वें...

कर्ज के बोझ तले दबा किसान ..

कर्ज के बोझ तले दबा किसान ...... आज किसान कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है, किसान की हालत बहुत नाजुक है। एक आंकड़े के मुताबिक 1995 से लेकर 2015 तक इन 20 सालों में 3 लाख 20 हजार किसान देश में आत्महत्या कर चुके हैं। यदि 2016 की बात करें तो इस एक साल में देश में 11 हजार 458 किसान सुसाइड कर चुके हैं। इस हिसाब से 1995 से लेकर 2016 तक 3 लाख 31 हजार 458 किसान सुसाइड कर चुके हैं। हरियाणा में 2015 में सरकारी आंकड़ों में 28 किसानों ने आत्महत्या की है। यदि गत पांच वर्षों की बात करें तो करीब 150 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सबसे ज्यादा आत्महत्या आत्महत्या आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र का किसान कर रहा है। किसानों पर काम करने वाले कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक गांव में किसान की लौकी का भा व 2 रुपए से 3 रुपए किलो होता है और उसी लौकी का शहर में 15 से 20 गुणा दाम अधिक हो जाता है। इसी तरह एक किसान का एक क्विंटल गेहूं पैदा करने पर 2050 रुपए खर्च आता है और किसान को मिलता है 1735 रुपए प्रति क्विंटल, इस हिसाब से 315 रुपए प्रति क्विंटल तो किसान को पहले ही घाटा हो रहा है। इसी तरह दूसरी सब्जियों पर किसान को नुकसान उठ...
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सरकारी बिजली कंपनियां डूबने के कगार पर -केंद्रीय बिजली मंत्री ने लिखा हरियाणा के सीएम को पत्र -हरियाणा में गत वर्ष 11912 मिलियन यूनिट बिजली चोरी हुई है -उदय योजना लागू होने के बाद भी  बिजली वितरण कंपनी व्यवहार्य नहीं हो सकती -हालांकि, इस वर्ष लाइन लॉस थोड़ा घटा है, लेकिन आर.के.सिंह के इस पत्र के बाद बिजली कंपनियों में हड़कंप मचा हुआ है चंडीगढ़। केंद्रीय बिजली राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आर.के सिंह के एक पत्र से राज्यों की बिजली कंपनियों में हड़कंप मचा हुआ है। हरियाणा में चुंकि बिजली मंत्रालय का कार्यभार स्वयं मुख्यमंत्री देख रहे हैं तो यह पत्र उन्होंने सीएम को ही लिख कर कहा है कि इनपुट एनेर्जी और बिल्ड एनेर्जी में 20 प्रतिशत से अधिक का अंतर है, ऐसी स्थिति में कोई भी  वितरण कंपनी व्यवाहर्य नहीं हो सकती। उन्होंने खुलकर लिखा है कि उदय स्कीम लागू होने के बाद भी  इन कंपनियों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। आर.के.सिंह ने यह पत्र 27 दिसंबर को लिखा था जो अब हरियाणा सरकार को मिल चुका है। उसमें उन्होंने कहा है कि उदय योजना के अंतर्गत विद्युत वितरण कंपनियों...

javed akhtar

मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में  कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में  वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे  अजीब बात हुई है उसे भुलाने में  जो मुंतज़िर [1]  न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा  कि हमने देर लगा दी पलट के आने में  लतीफ़ [2]  था वो तख़य्युल [3]  से, ख़्वाब से नाज़ुक  गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में  समझ लिया था कभी एक सराब [4]  को दरिया  पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में  झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा  ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में

javed akhtar

कभी यूँ भी तो हो  दरिया का साहिल हो  पूरे चाँद की रात हो  और तुम आओ  कभी यूँ भी तो हो  परियों की महफ़िल हो  कोई तुम्हारी बात हो  और तुम आओ  कभी यूँ भी तो हो  ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें  जब घर से तुम्हारे गुज़रें  तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें  मेरे घर ले आयें  कभी यूँ भी तो हो  सूनी हर मंज़िल हो  कोई न मेरे साथ हो  और तुम आओ  कभी यूँ भी तो हो  ये बादल ऐसा टूट के बरसे  मेरे दिल की तरह मिलने को  तुम्हारा दिल भी तरसे  तुम निकलो घर से  कभी यूँ भी तो हो  तनहाई हो, दिल हो  बूँदें हो, बरसात हो  और तुम आओ  कभी यूँ भी तो हो
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है  हँसती आँखों में भी नमी-सी है दिन भी चुप चाप सर झुकाये था रात की नब्ज़ भी थमी-सी है किसको समझायें किसकी बात नहीं  ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है  ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई  गर्द इन पलकों पे जमी-सी है  कह गए हम ये कैसे दिल की बात शहर में एक सनसनी-सी है  हसरतें राख हो गईं लेकिन  आग अब भी कहीं दबी-सी है -जावेद अख्तर 
हरियाणा में 4 साल में निकलीं 98 हजार नौकरियां, 87 हजार हाईकोर्ट में अटकीं प्रदेश में पिछले चार साल से जितनी भी नौकरियां निकलीं उनमें 95% से ज्यादा भर्तियों में कोई न कोई पेच फंसा है। इस अवधि में 98 हजार भर्तियां निकाली गईं। इसमें से 87,000 से ज्यादा तो कोर्ट में ‘तारीख पर तारीख’ के फेर में फंसी हैं। सबसे ज्यादा नौकरियां शिक्षा विभाग की हैं। हुड्‌डा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्षों में 43 हजार से ज्यादा नौकरियां निकालीं, इनमें जेबीटी, टीजीटी, पीजीटी, असिस्टेंट लेक्चरर समेत 39,897 भर्तियां शिक्षा विभाग में थीं, लेकिन नियमों या मानक में परिवर्तन से कोई न कोई आवेदनकर्ता कोर्ट पहुंचा और भर्तियां अटक गईं। हुड्‌डा सरकार के लिए चुनावी साल था, इसलिए इसमें तुरंत दिलचस्पी ली। खट्‌टर सरकार भी इस पर न तो कोई ठोस पहल कर पाई और न ही कोई कठोर निर्णय ले पाई। भाजपा सरकार ने अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में 47,107 पदों पर नौकरी निकाली। 600 डॉक्टरों और 500 इंजीनियरों की भर्ती के अलावा ज्यादातर मामले कोर्ट में चले गए हैं। हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की ओर से इस साल फरवरी से अब तक निकाली गई...

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