पुलिस का राजनीतिकरण नहीं हो तो क्राइम घट सकता है!
पुलिस का राजनीतिकरण नहीं हो तो क्राइम घट सकता है!
-एनसीआरबी की 2016 की जब से रिपोर्ट आई है उसके बाद विपक्ष के निशाने पर सरकार आई हुई है। कई केसों में हरियाणा में अपराध की दर बिहार, यूपी जैसे राज्यों से भी बदतर है। हरियाणा में औसतन हर दिन 10 अपहरण, 3 हत्या, 3 बलात्कार, 43 आॅटो चोरी और 60 चोरी के मामले दर्ज हो रहे हैं, यह चिंता की बात है। लेकिन, जिस तरह से पुलिस का राजनीतिकरण हुआ है उससे इन केसों की संख्या में कैसे कमी आए यह विचारणीय विषय है।
पूर्व के समय से रिवाज चला आ रहा है कि हरियाणा पुलिस के डीजीपी को सरकार के स्तर से एक लिस्ट आएगी उसको उसे अमली जामा पहनाना होता है। पहले भी सिफारशी लोगों को सरकार पोस्टिंग देती रहती थी। सीनियरों को छोड़कर जूनियर को डीजपी तक बना दिया करते। हालांकि, इस सरकार में सरकार की दखलअंदाजी कम है, लेकिन पूरी तरह से दखलअंदाजी खत्म हो गई हो यह भी नहीं कहा जा सकता।
किस जिले में कौन एसपी होगा कौन डीएसपी होगा यह सरकार के स्तर पर तय होता है। जबकि इसके लिए डीजीपी को फ्री हैंड दिया जाना चाहिए। अब कोई भी एसपी अपने हिसाब से जिले में काम करना शुरू करे तो उसकी ट्रांसफर हो जाती है। याद हो कि सिरसा के एसपी सत्येंद्र गुप्ता की ट्रांसफर एक बीजेपी के नेता ने ही वहां से ट्रांसफर करवाई थी, हालांकि बाद में सत्येंद्र गुप्ता को किसी और दूसरे जिले में लगा दिया। कहने का मतलब यह है कि सरकार कहती है कि हमनें टाउन एडं कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट में विभाग के डायरेक्टर को फ्री हैंड दिया हुआ है। उससे भी अधिक महत्वपूर्ण हरियाणा पुलिस के डीजीपी को फ्री हैंड देने की जरूरत है, हैरानी की बात यह है कि जिलों में एसएचओ की पोस्टिंग और ट्रांसफर के लिए नेताओं की पूरी दखल रहती है।
हां, जिले में एसपी को यदि कहा जाए कि कानून व्यवस्था खराब होती है तो आपकी जिम्मेदारी फिक्स की जाती है, यदि इस तरह से जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी तो फिर क्राइम कम हो सकता है। अब गुरुग्राम प्रदूमण हत्या मामले में पूरे देश ने देख ही लिया कि हरियाणा पुलिस कैसे जांच करती है? इस जांच के लिए 6 आईपीएस अधिकारियों की एक ही प्रकार की राय थी। लेकिन, अब जरूरत है कि पुलिस का आधारभूत ढांचा पूरी तरह से बदले। जांच प्रक्रिया भी आधुनिक होनी चाहिए वैसे ही किसी बेगुनाह को सजा नहीं देनी चाहिए। और यह तभी संभव है जब पुलिस का राजनीतिकरण ना हो। इसलिए जरूरी है कि पुलिस में राजनीतिक दखलअंदाजी बंद की जाए, यही हाल तहसीलों और बीडीपीओ आफिसों का है, यहां पर भी दखलअंदाजी नहीं होनी चाहिए।
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