ख़बरों की प्रासंगिकता के सन्दर्भ में -- प्रदीप डबास

ख़बरों की प्रासंगिकता के सन्दर्भ में

इस देश में हजारों अदालतों में रोजाना कई लोगों को बलात्कार के आरोप में सज़ा सुनाई जाती है, रोजाना सैंकड़ों की संख्या में पुलिस से भगौड़े घोषित लोगों को गिरफ्तार किया जाता है लेकिन हनीप्रीत अगर पकड़े जाने से पहले किसी चैनल को मैनेज कर गई तो चैनल को लग रहा है कि तीर मार लिया।

सवाल ये है कि आगे रहने की होड़ में यहां कानून से खिलवाड़ हुआ है या नहीं। चैनल की ओर से पुलिस को सूचित किया जाना चाहिए था एक भगौड़ी का इंटरव्यू करके ये लोग खुद को धन्य समझ रहे थे। मानो आज देश में हनीप्रीत के अलावा कोई खबर नहीं थी।

कश्मीर में बीएसएफ कैंप हर हमला और तीन आतंवादियों के ढेर होने की खबर को न्यूज चैनल वाले हनीप्रीत के सामने छोटा समाचार मानते हैं। किस तरह बेबस सी हो गई है पत्रकारिता।

लगता है कि मुद्दे नहीं सिर्फ मसाला चाहिए क्योंकि मध्यम वर्ग हनीप्रीत को देखता है सिर्फ कुछ फीसदी बुद्धिजीवी कश्मीर जैसे गंभीर मुद्दों को देखना चाहते हैं।

समाचार पत्र और न्यूज चैनलों में बैठे लोगों को दौड़ में बने रहने के लिए हनीप्रीत ही सुहाती है, नहीं तो खबर हर बुलेटिन में हैड लाइन और एक ढाई मिनट के पैकेज और अगर अखबार की बात करें तो मेरी नजरों में तीन कॉलम सैकेंड लीड विद फोटो से ज्यादा नहीं है। ज्यादा से ज्यादा अंदर के एक पेज पर इसके गायब होने से लेकर पकड़े जाने की चार कॉलम की एक स्टोरी और दे सकते हैं। हनीप्रीत के पीछे पागल होने की जरूरत नहीं लगती।

मुझे लगता है मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए। देश के बड़े मुद्दों से लोगों को अवगत करवाए तो बेहतर होगा।
मीडिया अगर इस कदर अपनी भूमिका से पीछे हटेगा तो फिर लोग भरोसा क्यों करेंगे। कौन हमें लोकतंत्र का चौथा सतंभ कहेगा।
पिछले करीब चालीस दिन से इन न्यूज चैनलों पर बाबा और हनीप्रीत के संबंध को लेकर जितना मसाला परोसा गया उससे सही में अब बदहज़मी हो गई है। अब बस भी करो भाई लोगों।

एक साहब तो तीन चार मीडिया हाऊसों में काम करने के बाद अब खुद को डेरा का प्रवक्ता बता रहे हैं और रोजाना किसी चैनल पर बैठकर डेरे का गुनगान करते नजर आते हैं। शायद इन चैनल वालों को भी नहीं पता होगा कि ये साहब अधिकारिक तौर पर डेरे के प्रवक्ता हैं भी या नहीं लेकिन उसे बैठाकर डेरा, बाबा और हनीप्रीत को लेकर गंदे- गंदे सवाल जरूर पूछ लेते हैं। भयंकर हंसी छूटती है उस वक्त।

अब कल ये भगौड़ी रिमांड पर या न्यायिक हिरासत में भेज दी जाएगी फिर चैनल वालों की खबर के लिए मारामारी शुरू होगी क्योंकि इन्हें ऐसा कोई वो मुद्दा तो चाहिए नहीं जो आम लोगों की तकलीफों से सरोकार रखता हो। इन्हें तो वो मसाला चाहिए जो टीआरपी दे और लोग चटकारे लेकर देखे। ये डंडा पत्रकारिता का कड़वा सच है। मेरे पत्रकार साथियों को बुरा लगा हो क्षमा चाहता हूं।
 

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