आरक्षण आंदोलन (हिंसा ) से ख़राब हुई छवि को फिर से बनाना जरूरी- प्रदीप डबास

आरक्षण आंदोलन (हिंसा ) से ख़राब हुई छवि को फिर से बनाना जरूरी
अभी थोड़ी देर पहले एक विद्वान शख्स के पास बैठा हुआ..उन्होंने एक बेहद गंभीर बात कही कि छवि बनाने के लिए आपको सालों लगातार मेहनत करनी पड़ती है लेकिन आपका एक गलत कदम उस छवि को खराब कर सकता है।
...सही कहा उन्होंने...उनके जाने के बाद से लगाता विचार कर रहा हूं कि छवि केवल इंसानों की ही नहीं बल्कि देश और प्रदेशों की भी खराब हो सकती है...अचानक आंखों के सामने पिछले साल आरक्षण के नाम पर हुई हिंसा आ गई...माफ कीजिए अगर किसी को ऐतराज हो लेकिन मेरा ये मानना है कि उस हिंसा की वजह से प्रदेश की छवि को बेहद नुकसान हुआ है...
... मुझे याद है इतवार को 14 तारीख का वो दिन...राजस्थान के हनुमानगढ़ जा रहा था...जाते हुए सांपला क्रॉस किया तो सब कुछ सामान्य था, फिर हिसार के मय्यड़ में रैली थी लेकिन वहां भी लोग पहुंच ही रहे थे आंदोलन जैसी कोई सुगबुगाहट नहीं थी वहां भी....खैर उसी दिन वापस आना था सांपला पहुंचते पहुंचते रात के करीब दस बस गये थे...जैसे ही सांपला के पास पहुंचा तो लंबा जाम लगा हुआ था...मुझे लगा कि कोई दुर्घटना की वजह से गांव वालों ने रास्ता ना रोक रखा हो...उतरकर आगे गया तो पता चला कि आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हो गया था...
गांवों के रास्ते से होकर दिल्ली पहुंचा फिर लग गये अपने काम में...करीब पांच दिन तक सांपला में एनएच 10 जाम था....जाम में फंसे सैंकड़ों ट्रक और दूसरे वाहन वहीं खड़े थे...निश्चित तौर पर इन ट्रकों में भारी मात्रा में सामान भी होगा लेकिन खास बात ये कि इन पांच दिनों में किसी ट्रक का तिरपाल तक नहीं उठाकर देखा गया...लेकिन फिर चिंगारी कहां से उठी ये समझने की जरूरत है...
आंदोलन रोहतक के दिल्ली बाईपास पहुंच गया और फिर जो हिंसा हुई उसे देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने देखा....यहां सवाल छवि का आता है... उस हिंसा में शामिल लोगों को शायद अपने प्रदेश की छवि से कोई सरोकार नहीं था वो सिर्फ आकाओं का हुकम मान रहे थे...
स्कूल जलाए गये...दुकाने फूंकी गईं... यहां तककि राजनेताओं के परिवारवालों तक को निशाना बनाया गया...आपसी भाईचारा तो इस कदर खराब हुआ कि शायद कई दशक लग जाएं हरियाणवियों के फिर से एक होने में....गहरी बात ये है कि रोहतक में जब स्कूल फूंके गये होंगे और उन नन्हें बच्चों ने अपने परिवार वालों से पूछा होगा कि किसने उनके मंदिर में आग लगा दी तो क्या जवाब मिला होगा...
निश्चित तौर पर ये कहा गया होगा कि जाटों ने फूंक दिये...मतलब साफ है कि उस नन्हें मन पर एक कौम को लेकर नकारात्मक छवि तैयार हो गई....यही सवाल छोटे से बढ़कर अब वहां पहुंचता है जहां किशोर या युवा अवस्था आती है...मतलब कॉलेज या यूनिवर्सिटी की क्लास...
मुझे याद है जब मैं रोहतक की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी का छात्र था तो अपने सर्कल के दोस्तों को उसकी जात से पुकारता था जैसे औ बाहमण, औ बाणिये...कोई बुरा नहीं मानता था...खुश होते थे...एक दोस्त ने बताया कि उसके पिता जी को नाना पाटेकर की वो फिल्म बहुत पसंद है जिसमें किरदार का नाम यशवंत लोहार होता है...क्योंकि वो जाति से लोहार था...हमारा प्रेम भाई जैसा था...
लेकिन इस हिंसा ने ऐसा प्रभाव छोड़ा है कि शायद अब उसी यूनिवर्सिटी में युवा दूसरी जाति के छात्र के साथ बैंच शेयर करते हुए भी कतराते हैं....
ऐसे होती है छवि खराब...व्यक्ति की छवि कभी भी अपने देश या प्रांत से बड़ी नहीं हो सकती...छवि बनानी है तो अपने प्रदेश और देश की छवि बनाने की कोशिश करनी चाहिए व्यक्तिगत तो अपनेआप ही बन जाएगी....
कौन हैं वो लोग जिनकी वजह से एक कौम के नाम पर दाग लगा....हिंसा हमारा रास्ता कभी नहीं रहीं...
हमने तो किसान के घर जन्म लिया है...रात को खेतों में पानी लगाने जाना होता था तो किसान बणिये को नींद से जगाकर दुकान खुलवा लेता था और हुक्के का तंबाखू या बीड़ी ले लेता था...वो भी उधार में...दुकानवाला भी ये सोचकर उधार देता था कि चौधरी सारी रात पानी में खड़ा रहेगा....
फिर कौन थे वो लोग जो शो रूम, दुकानों में लूटपाट कर रहे थे...
कौन थे वो लोग जो स्कूल जला रहे थे...
कौन थे वो लोग जिन्होंने नहरे काट दी..
मुझे लगता है कि जाट तो कतई नहीं होंगे.....अगर होंगे तो अपनी मानसिकता को कहीं गिरवी रखी होगी ऐसे आग लगाने वालों ने.....
इससे क्या कोई लाभ हुआ...बिलकुल नहीं...सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ...जानें गईं....प्रदेश की संपत्ति का नुकसान हुआ और फिर वही कहूंगा कि जो सबसे बड़ा नुकासन हुआ वो है छवि....दुनिया में जाटों का नाम ऐसा हो गया मानों ये किसी आतंकी संगठन से जुड़े लोग हों...
मैं सही कह रहा हूं....उस दौरान मेरे एक बुजुर्ग जानकार जो कि जाट नहीं हैं, उन्होंने मुझे फोन किया और पूछा था कि प्रदीप क्या मेरा बेटा फलां तारीख को रोहतक जा सकता है कोई खतरा तो नहीं....वो बोले कि जाटों ने वहां हद मचा रखी है....बेहद दुख हुआ....
कुछ निक्कमे लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम हुई....मैं बिलकुल भी आरक्षण के खिलाफ नहीं हूं.....मैं चाहत हूं कि चाहे किसी भी तरह हो कौम की बेहतरी होनी ही चाहिए ,
लेकिन साथ में ये भी मन करता है कि प्रदेश में वो भाईचारा फिर से वापस लौट आए जिसके लिए हरियाणा की मिसालें दी जाती थीं....फिर से ये प्रदेश छत्तीस बिरादरी के भाईचारे का प्रदेश बने...ये 35 बनाम एक का नारा देने वालों की पहचान हो और ऐसे लोगों का जिक्र भी अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहिए क्योंकि अगर हम इन्हें गाली भी देंगे तो इन्हें लाभ ही होगा....आप सभी जानकार लोगों से यही अनुरोध....

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