हर गांव को बिजली
हर गांव को बिजली
मुझे व्यक्तिगत तौर पर ये लगता है आजादी के बाद देश के विकास की किताब उल्टी खोली गई थी...गांधी जी ग्राम स्वराज की बात करते थे और नेहरू जी जो विदेश से शिक्षा लेकर आये थे उनकी नजर में विकास के मायने शायद बड़े- बड़े कारखाने, धुंआं छोड़ती चिमनियां, मोटर कार और शहरों में सुंदर मकान थे...देश को उस वक्त तरक्की की जरूरत थी औघोगिक क्रांति की जरूरत थी...शायद इसीलिए शहरी इलाकों का विकास तेजी से होने लगा..
.शुरुआत के दो ढाई दशकों तक सब ठीक ठाक लग रहा था लेकिन इसके विपरीत नतीजे 70 के दशक और उसके बाद एक दम से दिखने लगे....गांव से जो लोग शहरों में आकर बस गये थे वो संपन्न हो रहे थे....बिजली, पानी, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा रहे थे....उधर गांव के हाल में सुधार कुछ फीसदी ही देखने को मिल रहा था...
.ये चकाचौंध 80 के दशक के बीच तक गांव के लोगों को लालच देने लगी....क्योंकि गांव के विकास की ओर तब से लगभग लगातार चली आ रही कांग्रेस सरकारों का ध्यान गया ही नहीं था..
.अब गांवों से शहरों की ओर पलायन करने वालों की संख्या में अचानक इजाफा होने लगा....इसका नतीज ये रहा कि जिन लोगों की जेबें इतनी शक्तिशाली नहीं थी कि शहर के भीतर जमीन लेकर रहना शुरू कर दें वो बाहरी इलाकों में बसने लगे...यहां से शुरू हुआ अवैध कॉलोनियां काटने का सिलसिला.यहां पानी नहीं था, सड़के कच्ची थीं, सुविधाएं ना के बराबरा लेकिन यकीन था कि जल्दी मिल जाएंगी ये यकीन गांव में नहीं हो पा रहा था..
हालांकि इस तरह का पलायन 70 के दशक के बीच से शुरू हो चुका था लेकिन उस समय काफी कम था....सरकारों के लिए अब नई चुनौतियां थीं...बसे हुए लोगों उजाड़ सकते नहीं और जो लोग लगातार आ रहे थे या आ रहे हैं उन्हें रोके कैसे?
यहीं अगर शुरुआत से ही गांव और शहरों के विकास की ओर बराबर ध्यान दिया जाता तो गांधी जी का सपना भी साकार हो जाता और आज 21वीं सदीं में भी देश के प्रधानमंत्री को ये कहना पड़ रहा है कि हर गांव तक बिजली पहुंचाई जाएगी....ये पीड़ादायक है...
.सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि आखिर अब तक क्यों नहीं दी गई सभी गांवों को बिजली...
फिर वहीं आता हूं जहां से शुरू किया था देश के विकास की किताब उल्टी खुली है....सरकारों को अक्सर कहते सुना जाता है कि गांवों में शहरों के समान सुविधाएं दी जाएंगी,
सवाल ये है कि अभी तक दी क्यों नहीं गई. क्या देश के 80 फीसदी के करीब की आबादी के साथ भेदभाव नहीं...ये उघोग सरकारें शहरों के करीब इस लिए स्थापित करवाती है क्योंकि वहां से कनैक्टीविटी बेहतर होती है लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि गांव में छह या सात बजे के बाद बसे चलनी ही बंद हो जाएं या लाइट के दर्शन कुछ घंटे के लिए हों...
मेरा मानना है कि अब तो जल्दी करो नहीं आने वाले कुछ दशकों बाद भी प्रधानमंत्रियों को ये ही कहते सुना जाएगा कि देश के हर गांव को बिजली देना उनका पहला लक्ष्य होगा....
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