युवा दिशा चाहते हैं, दुर्दशा नहीं..

युवा दिशा चाहते हैं, दुर्दशा नहीं..
जब कोई व्यक्ति अपने हितों के लिए संघर्ष करता है तो उसे हर वो आदमी अपना लगने लगता है जो उसके जरा सा भी काम आ सकता है। कौम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है।
आरक्षण के लिए सूबे में संघर्ष चल ही रहा था तो एक नाम 2010 के बाद अचानक से सुर्खियों में आने लगा। वो पड़ोसी प्रदेश से आया था और हरियाणा में जाटों के हितों के लिए बिगुल बजा दिया। पता नहीं क्यों सूबे में कौम के लोग भी इसके साथ आने लगे।
मुझे याद है 2012 के मध्य में इस व्यक्ति ने हरियाणा में संघर्ष और बंद का ऐलान कर किया था। इसी सिलसिले में दिल्ली के मुंडका मैट्रो स्टेशन के नीचे इन लोगों ने जाम लगाया था। शाम को टीवी पर बहस के दौरान मैंने इन सहाब को फोन लाइन पर जोड़ रखा था। उस संवाद की ज्यादातर बाते मुझे बहुत अच्छे से इसलिए याद हैं क्योंकि उस वक्त मैं इस आदमी की फितरत समझने की कोशिश कर रहा था जो खुदको एक कौम के हितों का पैरोकार साबित करने पर तुला था।
मेरा पहला और सीधा सवाल ये था कि आपके इस प्रदर्शन में युवा तो कहीं दिखे नहीं, जितने भी लोग थे वो 50 साल से ऊपर के ही दिख रहे य़े। क्या नौकरियां इन्हें चाहिए। इन नेता जी का जवाब था कि उनकी ओर से आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनाई जा रही है। नौजवानों को वे तब सामने लाएंगे जब रेल रोकनी होगी, सड़के जाम करनी होंगी, दिल्ली के लिए दूध, पानी और सब्जी की सप्लाई बंद करनी होगी।
मेरा दूसरा सवाल ये था कि क्या आप हरियाणा के युवाओं को टूल की तरह इस्तेमाल करना चाहते हो। आपका मकस्द क्या है। जब युवा ये सब करेगा तो मुकदमे दर्ज नहीं होंगे क्या? जब युवा ये करेगा तो उसे जेल नहीं होगी क्या? जेल होगी तो आरक्षण मिलने के बाद भी नौकरी तो वो नहीं ही लग सकेंगे ना?
मुझे लगता है खुद को कौम का नेता कहने वाले उस शख्स को ये सवाल थोड़ा ज्यादा तीखा लगा।
जवाब देने की बजाय ऑन एयर उन्होंने मुझे मेरी जात याद दिलवाई। फिर ये भी कहा मैं इस कौम का भला नहीं कर रहा हूं।
सहाब मैं तो पत्रकार हूं। मैं तो आपकी फितरत उस वक्त कौम के सामने लाने की कोशिश कर रहा जब आप पनप रहे थे। सूबे का युवा जाट समझ गया होता तो पिछले साल प्रदेश को वो मंजर नहीं देखना पड़ता जिसने हरि के हरियाणा की तस्वीर पर हमेशा हमेशा के लिए एक बदनुमा दाग लगा दिया।
बहुत सीधे सीधे से सवाल आज भी इस नेता से कौम के लोग पूछ सकते हैं।
क्या अदालतों में चल रहे मसलों का समाधान सड़कों पर आग लगाने से निकल सकता है?
पिछले साल हुई हिंसा का जिम्मेदार कौन है?
रोड जाम करने और धरने दिलवाने के अलावा कौम को आरक्षण दिलवाने के लिए आपने और क्या क्या किया?
आरक्षण के लिए कोर्ट में चल रहे मामलों आपके संगठन की ओर से कहां-कहां पैरवी की जा रही है ये भी बताएं? शुरुआत से लेकर अब तक कितनी तारीखों पर आप खुद कोर्ट में गये हैं ? कौम के लोग ये भी जानना चाहते हैं।
प्रजातंत्र में सवाल पूछने का अधिकार है तो पूछे जा रहे हैं। जवाब भी आप से एक ना एक दिन लिया ही जाएगा, लेकिन मैं सूबे के युवाओं से भी अपील करना चाहता हूं कि भाई भीड़ का हिस्सा मत बना करो। पिछले साल प्रदेश का युवा भीड़ का हिस्सा बना और जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल हुआ। उसका इस्तेमाल किसी एक ने नहीं बल्कि कई लोगों ने एक साथ मिलकर किया।
ऐसा लग रहा था कि किसी के हाथों की कठपुतली आगे हजारों कठपुतलियों को नचा रही थी।
इससे नुकसान किसका हुआ?
क्या उस दौरान आरक्षण के झंडाबरदार बने हुए थे उनपर आज की तारीख में कोई मुकदमा दर्ज है?
बेटा मारा गया तो प्रदेश का मारा गया। ये सहाब तो दिन में यहां दौरा करके भाषण देकर शाम को पड़ोस के राज्य में अपने घर जाकर सो जाते थे। अगर किसी आका ले कोई निर्देश लेना होता तो रात के अंधेरे में मुलाकाते भी होती थी।
ये तय है कि अगर कौम आरक्षण की ये जंग जीत जाती है तो भी इस आदमी का इसमें कोई योगदान नहीं है।
क्या हरियाणा का युवा ऐसी ही टूल की तरह इस्तेमाल होता रहेगा?
कोई हमसे रेल की पटरियां उखड़वाएगा तो कोई हाई-वे खुदवा देगा?
कोई नहर टुड़वा देगा फिर मुकदमे होंगे भोले जाट पर?
जेल में जाएंगे भोले जाट के बेटे!
फिर उन्हें छुड़वाने के लिए सरकारों का विरोध किया जाएगा।
होना ये चाहिए कि आपके के तर्कों में इतना दम हो कि चाहे मामला कोर्ट में हो या सरकारों के सामने उन्हें मानना पड़े। खुद को कौम का नेता कहने वालों से हाथ जोड़कर अनुरोध है 2017 खत्म होने को है और 2019 सिर पर है। इस बीच कृपा जाटों के युवाओं को बख्श देना। ये युवा दिशा चाहते हैं, दुर्दशा नहीं।

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