मेरा किसान कुंभकरण की नींद सो रहा है
कुछ बातें आज 90 वर्षों बाद भी वही की वही ठहरी लगती है खासकर किसानो के बारे . आज से लगभग 90 वर्ष पहले सर छोटूराम ने जाट गजट में लिखा की
-मेरा किसान कुंभकरण की नींद सो रहा है, मैं उसे जगाने की कोशिश मे लगा हूं ,कभी उसके तलवे पर गुदगुदी करता हूं ,कभी उसके मुंह पर पानी के ठंडे छींटें मारता हूं ,वह आंख खोलता है, करवट बदलता है ,अंगड़ाई लेता है और जंभाई लेकर फिर सो जाता है.
1970 में गेहूं का का भाव 76 रुपए प्रति किवंटल था और उस समय सोने का भाव 184 रुपए का दस ग्राम होता था, उस दौरान किसान करीब ढ़ाई किवंटल गेहूं बेचकर एक तोला सोना खरीद लेता था। आज सोने का price 30 हजार रुपए प्रति तोला है और गेहूं का भाव 1625 रुपए प्रति किवंटल है।
आज हरियाणा में 16 लाख 17 हजार किसान परिवार हैं, इन किसान परिवारों से ही सेना और अर्ध सैनिक बलों में जवान भर्ती होते हैं, हमारे जवान जब देश की सीमा पर लड़ रहे होते हैं तो एक ध्यान उसका अपने बुजुर्ग माता पिता की ओर होता है, कि पता नहीं मेरे बाप को फसल के सही दाम मिले भी है या नहीं.जवान को यह चिंता हमेशा सताती है.
आज देश मे करीब 60 करोड़ आबादी किसानों की है, इस आबादी की आय में इजाफा हो जाए तो खेती की दशा और दिशा दोनों बदल सकते हैं.
वर्ष 2016-17 में किसान परिवार की औसत आय 20,000 आंकी गई है जो प्रतिमाह 1700 रपए से भी कम है. इतनी कम रकम से परिवार का भरण पोषण तो दूर एक गाय भी नहीं पाली जा सकती है.
किसान आज इतना कर्जदार हो चुका है बैंको ओर आढ़तियों के आगे मजबूर हैं जितनी भी कुरीतियों है मध्यम वर्ग उसको अपने साथ लपेटे हुए है आज भी घाटे का सौदा साबित होने के बावजूद देश की 52 फीसदी आबादी अब भी खेतीबाड़ी पर निर्भर है.
किसान कितना कर्ज मे है इसका अनुमान लगाये 1928-29 मे वायसराय द्वारा बनाये गये रॉयल कमीशन फॉर एग्रीकल्चर मे जिक्र है कि हिंदुस्तानी किसान कर्ज मे जन्म लेता है , कर्ज मे जीता है, कर्ज मे मर जाता है.आज भी ऐसा हो रहा है.और इस सरकार को इसलिये इतना कहा जाता है क्योंकि सरकार पर लोगों को विश्वास था कि ये स्वामीनाथन की रिपोर्ट लागू कर भला करेंगे . रॉयल कमीशन जैसी बात स्वामी नाथन रिपोर्ट मे भी कही गई है, कर्ज के बारे मे ..
दो वर्ष पूर्व सरकार ने किसानों को और ज्यादा दलहन की फसलें उगाने को कहा था, किसान ने प्रोत्साहित हो उत्पादन बढा दिया । किन्तु इसके साथ साथ व्यापारियों और व्यवस्था ने दालों का आयात भी बढ़ा दिया । परिणाम यह हुआ कि किसान को गत वर्ष एम एस पी भी नहीं मिल पाई, सरकारी तंत्र ने भी पूरी खरीद नहीं की और किसानों को व्यापारियों के हवाले छोड़ दिया ।
किसान को इस वर्ष भी दलहन उगाने के लिए प्रेरित किया गया, अनेक राज्यों में बड़े रकबे में खेती हुई है, बम्पर फसल सम्भावित है । आयात भी यथावत बड़े पैमाने पर जारी है । तुर्रा यह है कि देश में आज के दिन 17 लाख टन दालों का बम्पर स्टाक भी है ।
सरकार ने एम एस पी घोषित तो कर दी है किन्तु व्यवस्था किसान को देगी कतई नहीं यह निश्चित है। दूसरी ओर आयात के रास्ते में अवरोध तक भी नहीं खड़ा किया जा रहा है, प्रतिबंध तो दूर की बात है । इसको मात्र लापरवाही कहोगे या किसान की दुर्दशा करने के लिए साजिश?
हरियाणा के किसान की स्लेट भी कर दे साफ
-जिस प्रकार उत्तरप्रदेश और पंजाब में किसानों के कुछ कर्ज माफ हुए है, हरियाणा के किसानों के भी कर्ज माफ कर देने चाहिए। हरियाणा में किसानों पर अधिक कर्ज नहीं है। हरियाणा में 19 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की 594 शाखाओं से किसानों ने करीब 9000 करोड़ रुपए का शोर्ट टर्म अवधि का ऋण लिया हुआ है। इसके अलावा दीर्घ अवधि का ऋण जो हरियाणा का कृषि एवं ग्रामीण सहकारी विकास बैंक देता है इससे करीब 1800 करोड़ रुपए का कर्ज लिया हुआ है। इसके अलावा राष्ट्रीयकृत बैंकों से करीब 36000 करोड़ का कर्ज प्रदेश के किसानों ने लिया हुआ है। यह सारा मिलाकर करीब 46 हजार 800 करोड़ रुपए के आसपास का कर्ज बनता है। यदि सरकार दो लाख रुपए तक का कर्ज लिया हुआ है उन किसानों की मदद भी करती है तो भी प्रदेश के किसानों को भारी राहत मिल सकती है। अब पंजाब ने अपने छोटे किसानों के सारे कर्ज माफ कर दिए इस तरह से हरियाणा को भी पहल करनी चाहिए। यदि हरियाणा इस दिशा में आगे कदम नहीं बढ़ाता तो निश्चित तौर पर यहां के किसान सरकार से नाराज रहेंगे। हरियाणा में 16 लाख 17 हजार किसान परिवार हैं, यदि एक परिवार में औसतन पांच या छह आदमी भी मान कर चलें तो इनकी आबादी 90 लाख के आसपास पहुंचती है। वैसे प्रदेश में ज्यादातर छोटे किसान हैं, आज यह बात किसी से नहीं छिपी हुई कि खेती लगातार घाटे का सौदा होती जा रही है। इस दिशा में किसानों के एक बार ऋण माफ किए जाने चाहिए। आज हरियाणा का किसान भी सरकार की ओर टकटकी लगाए बैठा है कि शायद मनोहर लाल खट्टर सरकार पड़ोसी राज्यों की सरकार को देखकर उन पर रहम करेगी। लेकिन अभी तक उसके हाथ निराशा ही लगी है।
वैसे हरियाणा के किसानों को सरकार बनने से पहले बड़े-बड़े सपने दिखाए गए थे, लेकिन अभी तक उन सपनों को साकार नहीं किया गया। हांलाकि, हरियाणा सरकार ने कह दिया है कि यहाँ के किसानों के लिए बहुत कुछ किया है, अतः कर्ज माफी की कोई योजना नहीं है। अब देखना यह होगा कि सरकार देर सवेर किसानों की इस मांग को पूरा करती है या नहीं। आज देश में किसान के हालात बेहद चिंताजनक है एक आंकड़े के मुताबिक 1995 से लेकर 2016 तक देश में 3 लाख 30 हजार के करीब किसान आत्महत्या कर चुके हैं। हालांकि हरियाणा में आत्महत्या का आंकड़ा गत 5 साल में करीब 150 है। लेकिन किसान तो किसान है उसको सीमा रेखाओं में नहीं बांधे और प्रदेश के किसान का भी कर्ज माफ होना चाहिए। अब केंद्र सरकार कह रही है कि वे 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे, आज के दिन जो फसलों के दाम हैं वे 2022 तक तो अपने आप ही दोगुणे हो जाएंगे तो क्या फिर केंद्र सरकार इस तरह से किसानों की आमदनी दोगुनी करना चाहती है या फिर इसके लिए सरकार के पास और कोई फार्मूला है।
[10:24 AM, 12/31/2017] Pardeep Kr Malik(writer)
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