किसान कंपनियां
कोई भी देश सरकारी नौकरियों के भरोसे आगे नहीं बढ़ सकता, बल्कि वही देश आगे बढ़ें हैं, जिन्होंने अपने युवाओं को रोजगार करने के लिए प्रेरित किया है। क्योंकि सभी को सरकारी नौकरी देना किसी भी सरकार के बस में नहीं है। किसान कंपनियां ही युवाओं के भविष्य को उज्जवल बना सकती हैं। क्योंकि किसानों जब तक बाजार का हिस्सा नहीं बनेगा, तब तक उसे उसकी फसल की बढ़िया कीमत कोई सरकार नहीं दे सकती। सरकार अगर फसलों की कीमत बढ़ाएगी तो महंगाई एकदम से आसमान छूने लगेगी। तब गरीबों पर ज्यादा मार पड़ जाएगी। जबकि किसान कंपनियों के माध्यम से वह रास्ता निकलता है, जहां न महंगाई बढ़ेगी और उपभोक्ता को भी बिना मिलावट का शुद्ध भोजन उपलब्ध हो सकेगा। किसान कंपनियां ही इस देश के भविष्य का निर्माण कर सकेंगी।
किसान मिलकर बनाएंगे अपना भविष्य
सरकार और विपक्ष के बीच किसान फुटबाल वर्षों से बना हुआ है। सरकारों के भरोसे लंबा समय बीत गया, परंतु किसान खुशहाल नहीं हुए. मीडिया, सरकार और विपक्ष के मुद्दों में किसान भले ही बना रहता हो, पर किसान को कोई फायदा नहीं हो रहा। ऐसे में किसानों ने ही अपने हालात बदलने का निर्णय लिया और नए प्रयोग करने शुरू किए हैं। ताकि जो मौके और जितना ‘स्पेस’ है, उसी में रंग भरा जाए।
हरियाणा की सरजमीं पर किसान कंपनियां भले ही अपने शैशवकाल में हो, परंतु उनकी रणनीति और नियत देखकर कहा जा सकता है कि किसानों के उज्ज्वल भविष्य की नींव इन किसान कंपनियों ने रखनी शुरू कर दी है। अगर यह प्रयोग सफल हुआ तो किसानों को सरकार की तरफ हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
दरअसल खेती मूलतः व्यापार ही है, परंतु साजिश के तहत दोनों को अलग-अलग परिभाषित कर दिया गया और दोनों के बीच खाई बढ़ने से दोनों की आमदनी में भी जमीन-आसमान का फर्क आता गया। ये किसान कंपनियां इस फर्क को कम करेंगी। दूसरी तरफ उपभोक्ताओं से सीधे जुड़कर उन्हें साफ-सुथरा भोजन परोस सकेंगी। उपभोक्ता का स्वास्थ्य ठीक रहे और किसान को उसकी मेहनत का उचित फल मिलता रहे। यही सपने लेकर बनाई गई हैं- किसान कंपनियां
आइए हम सभी इस मुहिम को आगे बढ़ाएं...
किसान मिलकर बनाएंगे अपना भविष्य
सरकार और विपक्ष के बीच किसान फुटबाल वर्षों से बना हुआ है। सरकारों के भरोसे लंबा समय बीत गया, परंतु किसान खुशहाल नहीं हुए. मीडिया, सरकार और विपक्ष के मुद्दों में किसान भले ही बना रहता हो, पर किसान को कोई फायदा नहीं हो रहा। ऐसे में किसानों ने ही अपने हालात बदलने का निर्णय लिया और नए प्रयोग करने शुरू किए हैं। ताकि जो मौके और जितना ‘स्पेस’ है, उसी में रंग भरा जाए।
हरियाणा की सरजमीं पर किसान कंपनियां भले ही अपने शैशवकाल में हो, परंतु उनकी रणनीति और नियत देखकर कहा जा सकता है कि किसानों के उज्ज्वल भविष्य की नींव इन किसान कंपनियों ने रखनी शुरू कर दी है। अगर यह प्रयोग सफल हुआ तो किसानों को सरकार की तरफ हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
दरअसल खेती मूलतः व्यापार ही है, परंतु साजिश के तहत दोनों को अलग-अलग परिभाषित कर दिया गया और दोनों के बीच खाई बढ़ने से दोनों की आमदनी में भी जमीन-आसमान का फर्क आता गया। ये किसान कंपनियां इस फर्क को कम करेंगी। दूसरी तरफ उपभोक्ताओं से सीधे जुड़कर उन्हें साफ-सुथरा भोजन परोस सकेंगी। उपभोक्ता का स्वास्थ्य ठीक रहे और किसान को उसकी मेहनत का उचित फल मिलता रहे। यही सपने लेकर बनाई गई हैं- किसान कंपनियां
आइए हम सभी इस मुहिम को आगे बढ़ाएं...
किसानों और उपभोक्ताओं के बीच तालमेल और जागरूकता बढ़ाने वाले कमलजीत जी ने फेसबुक पर लिखा है कि-
“हम कितनी ही बड़ी बड़ी बातें बोल लें लेकिन जब बात धरातल पर होती है तो कानों तक पसीना आना लाज़िमी होता है। अपने सामान को उपभोक्ता तक ले जाने के लिए पूरी वैल्यू चैन पर कब्जे का ख्वाब कोई नया नहीं है। अभी हाल फिलहाल में भारत में भी रिलायंस फ्रेश हो या सुभिक्षा हो या फिर बिगबास्केट बहुत सारे प्रयोग हुए और लगभग सारे डूबे।किसान कंपनी के पास डुबाने और खोने को कुछ बचा ही नहीं है, बची है तो सिर्फ एक उम्मीद और एक हिम्मत वो पता नहीं किस मैटेरियल की बनी है कि डुबाये नहीं डूबती।
सरकार किसान कंपनी के लिए और बताओ क्या कर सकती है, जगह दे दी और प्लेटफॉर्म दे दिया काम तो अब किसानों ने ही करना है।
एक आउटलेट को प्रॉफिट में ले आये तो फिर पूरा देश पड़ा है काम करने के लिए।”
खेती घाटे का नहीं मुनाफे का काम है- इसी थीम पर ये कंपनियां आगे बढ़ रही हैं और कंपनियां बढ़ेंगी तो किसान बढ़ेंगे, किसान बढ़ेंगे तो देश बढ़ेगा...
“हम कितनी ही बड़ी बड़ी बातें बोल लें लेकिन जब बात धरातल पर होती है तो कानों तक पसीना आना लाज़िमी होता है। अपने सामान को उपभोक्ता तक ले जाने के लिए पूरी वैल्यू चैन पर कब्जे का ख्वाब कोई नया नहीं है। अभी हाल फिलहाल में भारत में भी रिलायंस फ्रेश हो या सुभिक्षा हो या फिर बिगबास्केट बहुत सारे प्रयोग हुए और लगभग सारे डूबे।किसान कंपनी के पास डुबाने और खोने को कुछ बचा ही नहीं है, बची है तो सिर्फ एक उम्मीद और एक हिम्मत वो पता नहीं किस मैटेरियल की बनी है कि डुबाये नहीं डूबती।
सरकार किसान कंपनी के लिए और बताओ क्या कर सकती है, जगह दे दी और प्लेटफॉर्म दे दिया काम तो अब किसानों ने ही करना है।
एक आउटलेट को प्रॉफिट में ले आये तो फिर पूरा देश पड़ा है काम करने के लिए।”
खेती घाटे का नहीं मुनाफे का काम है- इसी थीम पर ये कंपनियां आगे बढ़ रही हैं और कंपनियां बढ़ेंगी तो किसान बढ़ेंगे, किसान बढ़ेंगे तो देश बढ़ेगा...
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