किसानों का कौन सहारा -भाग -1
वोट बैंक नहीं आत्मनिर्भर बनो
बात चली है किसानों की बदहाली की। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि आज के दिन किसान आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन गया है।कौन सी पार्टी किसान का कितना भला चाहती है और कौन सी राजनीतिक पार्टी किसान के नाम पर ज्यादा घड़ियाली आँसूं बहा सकती है? यही दावपेच चल रहे हैं क्योंकि भारत में किसानों जितना बड़ा और कोई वोटबैंक नहीं है। सभी की निगाहें किसानों की वोट पर टिकी हैं।
मुद्दे की बात कोई नहीं कहता कि किसान को क्या करना चाहिए, किसान को क्या अपनाना चाहिए ताकि वह खुशहाल हो।
किसानों की जो कुछ कमियां हैं उनको भी रेखांकित किया जाना जरूरी है।
प्रोग्रेसिव किसान जो रोल मॉडल हो सकते हैं, उनको लाइमलाइट में लाना भी जरूरी है।
पारंपरिक खेती की बजाए आधुनिक खेती कैसे हो इस पर जोर देना जरूरी है
साथ ही अंधाधुंध रासायनिक खाद और रासायनिक कीटनाशकों पर भी किसानों को जागरुक करना आवश्यक है
इसके साथ-साथ इसके साथ-साथ सरकारी महकमा क्या कर रहा है ? इसकी मॉनिटरिंग होना बहुत जरूरी है। मॉनिटरिंग के साथ-साथ कृषि विभाग का सोशल ऑडिट होना भी बहुत जरुरी है।
अब यहीं से शुरुआत करते हैं। किसानों के पास जो बचा हुआ समय है उसको कैसे उपयोग में लाया जाए ? कहते हैं ना कि समय ही धन है तो इस समय को धन में कैसे बदला जाए? मैं ज्यादा तो नहीं कहूंगा लेकिन ज्यादातर किसान अपना ज्यादातर समय ताश खेलकर हुक्का पीकर और अन्य व्यर्थ कामों में जाया करते हैं तो बात वहीं आती है कि किसानों की तरक्की व आर्थिक उन्नति कैसे हो ? इसका सीधा सा जवाब यह है कि बचे हुए समय को काम में लाया जाए।
इसके लिए परंपरागत कृषि को छोड़ना पड़ेगा आधुनिक कृषि तकनीक अपनानी पड़ेगी
और सबसे बड़ी बात सरकार पर से निर्भरता कम करनी होगी क्योंकि सरकार और विपक्ष का काम राजनीति करना है ना कि वास्तव में किसान की भलाई करना।
लोन माफ करना, बिजली बिल माफ करना यह सब ओस की बूंद के समान है इनसे थोड़ा बहुत तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है लेकिन ये किसान की आर्थिक स्थिति का स्थाई समाधान नहीं है।
जनसंख्या बढ़ने के कारण खेती की जोत छोटी होती जा रही हैं अतः उसमें गेहूं, धान, बाजरा, ज्वार और चना आदि पारंपरिक फसलें छोड़नी होंगी। फल सब्जी की तरफ बढ़ना होगा लेकिन इन सब में मेहनत ज्यादा है अतः किसानों को अपने बचे हुए घंटे यहां लगाने होंगे।
केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने लगभग हर जिले में कृषि विज्ञान/ज्ञान केंद्र बनाए हुए हैं। वहां भी विशेषज्ञ मौजूद हैं उनकी सलाह लेकर उन्नत खेती की जा सकती है। इनमें कार्यरत कृषि विज्ञानियों पर अविश्वास करना सही नहीं है।
आज बहुत से ऐसे किसान हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती की जगह आधुनिक तौर तरीके अपनाए हैं और अच्छा खासा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उन किसानों से मिलकर प्रेरणा लेकर खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है।
सबसे बड़ी बात हरित क्रांति के दुष्प्रभाव अब सामने आने लगे हैं रासायनिक खादों और रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से उत्पाद जहरीले हो गए हैं अतः लोग जैविक खेती की तरफ मुड़ गए हैं अगर किसान जैविक खेती अपना लें तो भी खेती से मुनाफा कमाया जा सकता है। क्योंकि जैविक उत्पाद खूब ऊँचे दामों में बिकते हैं।
अंत में कहना चाहूंगा कि मेरा मकसद किसान को हतोत्साहित करना नहीं है बल्कि उसको मोटिवेट करना है। सरकार का सहारा ताकना छोड़िए। हां ! प्रकृति के प्रकोप से फसलें खराब हो जाती हैं उनके लिए सरकार का सहारा लिया जा सकता है। आजकल तो सरकार ने बीमा कंपनियों को यह काम सौंप कर अपना पल्ला छुड़ा लिया है तो फिर काहे को सरकार के सहारे रहना ?

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