फसल के वक्त अनाज सस्ता , बाद में महंगा,
फसल के वक्त अनाज सस्ता , बाद में महंगा,
यह सन्तुलन बिठाने में सरकार पूरी तरह नाकाम
-अब समय आ गया है एक बार किसान की स्लेट साफ कर देनी चाहिए -किसानों की पीड़ा यह है कि कभी उनको फसल के सही दाम नहीं मिले. कमीशन फ़ॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट एडं प्राइस (सीएसीपी) ने कभी भी किसानों को उनकी फसलों के सही दाम नहीं दिए.
सरकारें कहती हैं कि किसान को परंपरागत फसलें छोड़कर सब्जियों और फूलों की खेती करनी चाहिए.लेकिन ,अब जो किसान सब्जियां उगाते हैं, उनकी हालत भी बहुत दयनीय है. किसान की लौकी जहां 2 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती है और वही लौकी दिल्ली पहुंचते पहुंचते उसकी कीमत 15 गुना बढ़ जाती है और यह लौकी 30 रुपए किलो में बिकती है.दूसरी सब्जियों का भी यही हाल है. अब हरियाणा का किसान सालों से सूनता आ रहा है कि हरियाणा में विश्व स्तर की होर्टिकल्चर मंडी बनेगी, इसके लिए प्रदेश के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ विदेशों के दौरे भी कर रहे हैं, लेकिन लगता नहीं कि इस सरकार के कार्यकाल में यह मंडी बनकर तैयार हो जाएगी.इसके अलावा हरियाणा में एक फूलों की मंडी भी बननी है, वह भी अभी फाइलों में ही बन रही है. किसान का सही मायने में भला तब हो सकता है जब किसान को उसकी फसल के सही दाम मिलें, उसको सही समय पर खाद बीज मिले. हैरानी की बात यह है कि किसान को जो दवाइयां मिलती हैं वे भी काफी नकली होती हैं, जबकि पैसे ओरिजनल दवाई के लिए जाते है .
अब जब किसानों को पर्याप्त बिजली नहीं मिलती, समर्थन मूल्य नहीं मिलता, फसल के वक्त सब्जी हो या अनाज सस्ता हो जाता है लेकिन बाद में महंगा हो जाता है, ये संतुलन बिठाने में सरकार पूरी तरह से नाकाम रही हैं. आज भी हरियाणा के 37 हजार 286 किसान टयूबवेल के लिए बिजली कनेक्शन लेने के लिए लंबी लाइन लगाए खड़े हैं. दुख की बात यह भी है कि आज किसान को इतनी आय नहीं होती है कि वो ट्रेक्टर के ऋण की किश्त तक दे सके, भले ही ऋण सिर्फ आठ फीसदी की दर से मिलता हो .अगर कोई उद्योगपति उद्योग लगाता है तो पांच साल के लिए सारे टैक्स माफ कर दिए जाते हैं, जब किसान ऋण लेता है तो उसे कहा जाता है कि तुम पूरा भरो और वो बेचारा भरता रहता है.जिस प्रकार कॉर्पोरेट को सब्सिडी दी जाती है, उसी तरह खेती के लिए किसान को प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए.अब समय आ गया है एक बार किसान की स्लेट साफ कर देनी चाहिए, तब जाकर किसान मुख्यधारा में आ सकता है. किसान पर जब कर्ज बढ़ता गया तो यही मुख्य वजह है कि 1995 से लेकर 2016 तक देश मे 3 लाख 32 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
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