पढ़ी लिखी पंचायतें- एक बेहतर भविष्य की और एक बड़ा कदम
साल 2015 में हरियाणा की बीजेपी सरकार की ओर से सूबे में पंच और सरपंचों के लिए पढ़े लिखे होने की अनिवार्यिता को निधार्ति किया गया तो विरोध भी हुआ। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने इसे संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन मानने से इंकार कर दिया और विरोध खारिज हो गया।
ये एक ऐतिहासिक फैसला हम कह सकते हैं। भले ही निचले स्तर पर ही सही कहीं से तो सुधार शुरू होना जरूरी था। हमारे खादीधारी भले ही मानने को तैयार ना हों लेकिन कोर्टों को हकीकत मालूम है। वहां कौरी राजनीति नहीं चलती। दलील दी गई कि ग्रामीण क्षेत्रों में 83 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 67 फीसदी महिलाएं निरक्षर हैं ऐसे में वो अपने चुनाव लड़ने के अधिकारों से वंचित रह जाएंगी। कोर्ट कहता है कि ये ठीक नहीं जनप्रतिनिधि तो वो ही होना चाहिए जो पढ़ा लिखा हो।
खैर हरियाणा में इस वक्त सभी पंचायतें पढ़ी लिखी हैं। एक बार विरोध हुआ लेकिन इसके बेहतर परिणाम देखते हुए सरकार एक कदम आगे बढ़ रही है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर विधायकों और सांसदों के चुनावों के लिए भी शैक्षणिक योग्यता तय करने का अनुरोध किया है। हालांकि विधायकों और सांसदों के लिए इस तरह का कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास नहीं होता लेकिन मुख्यमंत्री की इस पहल पर अगर केंद्र की ओर से गौर किया गया तो ये भी ऐतिहासिक होगा।
ये भारत जैसे विशाल देश के लिए चुनाव सुधार की दृष्टि में बेहद बड़ा कदम हो सकता है। हजारों-लाखों पढ़े लिखे मतदाताओं की राय से एक कम पढ़ा लिखा या अनपढ़ आदमी विधानसभा या संसद भवन पहुंचता है तो उससे उम्मीदें कैसी हो सकती हैं ये भी सोचने की बात है। हम उसके विवेक पर अंगुली नहीं उठा सकते लेकिन ज्ञान पर सवाल जरूर कर सकते हैं।
वर्तमान लोकसभा में इस वक्त 13 फीसदी सांसद दसवीं पास भी नहीं है और इसके इलावा 10 फीसदी तो ऐसे एमपी हैं जिनके पास दसवीं से ऊपर की डिग्री नहीं है। ये बेहद गंभीर बात है कि देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं और सबसे छोटी पंचायतों में बिना शिक्षा के एंट्री नहीं। बड़ी पंचायतों में भी ये ही नीयम लागू हो तो बेहतर है।
वापस हरियाणा पर आते हैं। यहां कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ विधायक आपको भारी संख्या में मिल जाएंगे। इनमें सत्ता और विपक्ष दोनों दलों के विधायक और सांसद शामिल हैं।
परिवहन मंत्री कृष्ण लाल पंवार दसवीं के साथ बायलर कंपेटेंसी डिप्लोमाधारी हैं।
इसके अलावा असंध के भाजपा विधायक बख्शीश सिंह और कालांवाली के शिरोमणि अकाली दल (बादल) के विधायक बलकार सिंह दसवीं पास हैं।
दसवीं पास विधायकों में जींद से इनेलो विधायक हरिचंद मिड्डा, पिहोवा से इनेलो विधायक जसविंद्र सिंह संधू, सिरसा से सांसद चरणजीत सिंह और समालखा से आजाद विधायक रवींद्र मछरौली शामिल हैं।
पंचकूला से भाजपा विधायक ज्ञानचंद गुप्ता की शैक्षणिक योग्यता 12वीं है।
12वीं तक शिक्षा प्राप्त करने वालों में खरखौदा से कांग्रेस विधायक जयवीर बाल्मिकी,
गुहला से भाजपा विधायक कुलवंत बाजीगर
और कलानौर से कांग्रेस विधायक शकुंतला खटक।
इसके अलावा रोहतक से भाजपा विधायक और सहकारिता राज्य मंत्री मनीष ग्रोवर,
चरखी दादरी से इनेलो विधायक राजदीप,
रानियां से विधायक रामचंद कांबोज
और नलवा से इनेलो विधायक रणबीर सिंह गंगवा और
सोहना से भाजपा विधायक तेजपाल तंवर ने12वीं से ज्यादा की पढ़ाई नहीं की है।
बरौदा से कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा अंडर मैट्रिक हैं।
सिरसा से इनेलो विधायक मक्खन लाल सिंगला आठवीं से कम पढ़ लिखे हैं।
नरवाना के विधायक पृथी सिंह आठवीं पास है।
पृथला से बसपा विधायक टेकचंद शर्मा ने प्री-यूनिवर्सिटी करने के साथ डिप्लोमा कर रखा है।
पटौदी से भाजपा विधायक बिमला चौधरी तो मात्र पांचवीं तक स्कूल गईं हैं।
सवाल फिर से वही खड़ा हो रहा है क्या पंचायतों के साथ साथ विधानसभाओं और संसद में पढ़े-लिखे लोग नहीं होने चाहिए? क्या इन लोगों के लिए शैक्षणिक योग्यता नहीं होनी चाहिए? प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री के इस खत पर जरूर विचार करना चाहिए ये एक बेहतर समाज के निर्माण में सहयोगी साबित होगा।

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