नहर की मांग को मुद्दा बनाकर किसानों से मांगे गए वोट, पानी नहीं हुआ नसीब- मुकेश राजपूत , एडिटर ,न्यूज़ 18 हरियाणा
नहर की मांग को मुद्दा बनाकर किसानों से मांगे गए वोट, पानी नहीं हुआ नसीब
प्यासे हरियाणा का गला तर करने के इरादे से बरसों पहले अस्तित्व में आई अधूरी पड़ी दादूपुर नलवी नहर का मुद्दा इन दिनों हरियाणा में छाया हुआ. कई चुनावों में इस नहर की मांग को मुद्दा बनाकर किसानों से वोट मांगे गए लेकिन किसानों को नहर का पानी नसीब नहीं हुआ.
प्यासे हरियाणा का गला तर करने के इरादे से बरसों पहले अस्तित्व में आई अधूरी पड़ी दादूपुर नलवी नहर का मुद्दा इन दिनों हरियाणा में छाया हुआ. कई चुनावों में इस नहर की मांग को मुद्दा बनाकर किसानों से वोट मांगे गए लेकिन किसानों को नहर का पानी नसीब नहीं हुआ.
1980 में किसानों ने नहर के लिए आवाज की बुलंद
1980 में कुरुक्षेत्र और अंबाला के किसानों ने नहर के लिए आवाज़ बुलंद की. कई चुनावों में इस मांग को मुद्दा बनाया गया. 1987 में 137 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया गया और उस वक्त दादूपुर-नलवी नहर परियोजना का बजट 45 करोड़ रुपये रखा गया.
1980 में कुरुक्षेत्र और अंबाला के किसानों ने नहर के लिए आवाज़ बुलंद की. कई चुनावों में इस मांग को मुद्दा बनाया गया. 1987 में 137 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया गया और उस वक्त दादूपुर-नलवी नहर परियोजना का बजट 45 करोड़ रुपये रखा गया.
2004 में रखी गई नहर की नींव
साल 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने परियोजना की नींव रखी. 2005 में सत्ता बदली और ज़मीन अधिग्रहण का काम शुरू हुआ. 50 किलोमीटर लंबी नहर के लिए अंबाला कुरुक्षेत्र यमुनानगर के 225 गांवों की 860 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित की गई. 2006 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शिलान्यास किया और नहर की खुदाई शुरू हुई.
साल 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने परियोजना की नींव रखी. 2005 में सत्ता बदली और ज़मीन अधिग्रहण का काम शुरू हुआ. 50 किलोमीटर लंबी नहर के लिए अंबाला कुरुक्षेत्र यमुनानगर के 225 गांवों की 860 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित की गई. 2006 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शिलान्यास किया और नहर की खुदाई शुरू हुई.
2007 में किसानों ने जमीन देने का किया विरोध
2007 में कुछ किसानों ने ज़मीन देने का विरोध करना शुरू कर दिया जिसके बाद विभाग पीछे हट गया. बाद में प्रोजेक्ट का बजट 45 करोड़ रु से बढ़ाकर 267.27 करोड़ रु कर दिया गया. 2009 के चुनाव से पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पानी छोड़ने को हरी झंडी दे दी. एक बार पानी आया वो भी टेल तक नहीं पहुंचा. उस वक्त ज़मीन अधिग्रहण के लिए पांच लाख रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा दिया गया था.
2007 में कुछ किसानों ने ज़मीन देने का विरोध करना शुरू कर दिया जिसके बाद विभाग पीछे हट गया. बाद में प्रोजेक्ट का बजट 45 करोड़ रु से बढ़ाकर 267.27 करोड़ रु कर दिया गया. 2009 के चुनाव से पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पानी छोड़ने को हरी झंडी दे दी. एक बार पानी आया वो भी टेल तक नहीं पहुंचा. उस वक्त ज़मीन अधिग्रहण के लिए पांच लाख रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा दिया गया था.
प्रोजेक्ट बंद करने की वजह
कम मुआवजे का आरोप लगाकर किसान कोर्ट चले गये. हाईकोर्ट में किसानों की जीत हुई और हाईकोर्ट ने सरकार को 12 गांव की 60 एकड़ ज़मीन के लिए 300 करोड़ रुपये एनहॉन्समेंट देने के आदेश दिये. अगर इस तर्ज पर सरकार सभी किसानों को एनहॉन्समेंट देती तो सरकार को 4,124 करोड़ रु देने पड़ते. यही वजह है कि सरकार ने इस परियोजना को बंद करना ही मुनासिब समझा.
कम मुआवजे का आरोप लगाकर किसान कोर्ट चले गये. हाईकोर्ट में किसानों की जीत हुई और हाईकोर्ट ने सरकार को 12 गांव की 60 एकड़ ज़मीन के लिए 300 करोड़ रुपये एनहॉन्समेंट देने के आदेश दिये. अगर इस तर्ज पर सरकार सभी किसानों को एनहॉन्समेंट देती तो सरकार को 4,124 करोड़ रु देने पड़ते. यही वजह है कि सरकार ने इस परियोजना को बंद करना ही मुनासिब समझा.
प्रोजेक्ट बंद करने की दूसरी वजह
प्रोजेक्ट बंद करने के पीछे की दूसरी वजह भी है. दरअसल दादूपुर-नलवी नहर प्रोजेक्ट पर ऑडिट ऑब्जेक्शन लगा था. ऑडिट ऑब्जेक्शन में ये कहा गया कि नहर की उपयोगिता जाने बिना ही पैसा खर्च कर दिया गया. दोनों वजहों के बाद सरकार ने नहर के लिए अधिग्रहित ज़मीन को
प्रोजेक्ट बंद करने के पीछे की दूसरी वजह भी है. दरअसल दादूपुर-नलवी नहर प्रोजेक्ट पर ऑडिट ऑब्जेक्शन लगा था. ऑडिट ऑब्जेक्शन में ये कहा गया कि नहर की उपयोगिता जाने बिना ही पैसा खर्च कर दिया गया. दोनों वजहों के बाद सरकार ने नहर के लिए अधिग्रहित ज़मीन को
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