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Showing posts from 2018

CM पद की दावेदारी में बिखरा विपक्ष ?

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कर्नाटक चुनाव के दौरान देश के 17 स्वयं घोषित(self-proclaimed) #प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार एक मंच पर फोटोशूट करवाते दिखे। आज हमारे हरियाणा में भी ऐसे ही 10 से अधिक  स्वयं घोषित (self-proclaimed) मुख्यमंत्री  पद के उम्मीदवार हो चुके हैं।  इस लिस्ट को बढ़ाने का काम अब भी जारी है। इनेलो बंटवारे की राह पर है।सत्ता के लिये विधायकों को अपणी तरफ़ लाने के लिये कोशिशों के बारे में तो बहुत सुना था ,परन्तु  "विपक्ष" में बने रहने के लिए , कोई पार्टी  अपने विधायकों को लुभाने पर लगी हो  ऐसा पहली बार सुन रहे हैं । कांग्रेस का अभी तक बंटवारा तो नहीं हुआ ,पर अंदरूनी खाते बारूद के ढेर पर हैं।इन पार्टीज और नेताओं ने खुद ही ,अपने-अपने  अस्तित्व को खात्मे के कगार पर ला दिया है।  ख़बरों में बने रहने के लिए रोज़ नये-नए तरीके इज़ाद किये जा रहे हैं।  इसके लिए चाहे विधानसभा में जूतम-पैजार हो या सड़क पर रेलम-पेल कुछ और नहीं  तो चाहे पार्टी को अपने ही घर में ही जूत-बजाणा पड़े ,पर अपने कार्यकर्ताओं के नज़रों में अपना वज़...

नया हरियाणा कैसे बने (भाग-3 )

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रोडवेजकर्मी हड़ताल हम अपने प्रदेश को हड़ताल प्रदेश नहीं देखना चाहते। कर्मचारी जाने क्यूँ इस आख़री विकल्प को अपनी उचित /अनुचित माँगे मनवाने के लिए सबसे पहले  विकल्प के रूप में चुन रहे है। पहले गेस्ट टीचर, आशा वर्कर, होमगार्ड, फायर ब्रिगेड, बिजलीकर्मी और अब रोडवेजकर्मी हड़ताल पर हैं।                 हड़ताल के सीधे-सीधे मायने हैं -कर्मचारियों का काम ना करना (mass refusal of employees to work ) यह एक तरह का  Civil resistance   होता है (non-violent ) जो किसी न किसी  ताक़त या पॉलिसी के खिलाफ किसी अच्छे बदलाव की जननी होता है।  परन्तु आजकल हड़ताल का मतलब है चुनावी समय का फायदा उठाकर , राजनितिक गलियारों और अपने साथियों के बीच  अपनी पहचान और दबदबा बनाये रखना।  चाहे एस्मा ही क्यों न लगा हो।  सरकारी परिवहन समितियों (1993), नई परिवहन पालिसी (1999), वॉल्वो बस (2006) आदि के समय भी विरोध हुआ ,और यही हम किलोमीटर स्कीम के तहत चलाई जाने वाली किराये की प्राइवेट बसों के खिलाफ देख रहे हैं। क्यूँकि बहुत से...

देखना उनका कनखियों से

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देखना उनका कनखियों से इधर देखा किये अपनी आह-ए-कम-असर का हम-असर देखा किये लम्हा लम्हा वक़्त का सैलाब चढ़ता ही गया रफ़्ता रफ़्ता डूबता हम अपना घर देखा किये कोई क्या जाने के कैसे हम भरी बरसात में नज़र-ए-आतिश अपने ही दिल का नगर देखा किये सुन के वो 'शहज़ाद' के अशआर सर धुनता रहा थाम कर हम दोनों हाथों से जिगर देखा किये Farhat Sehzaad

मगर कहना उसे

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कोंपलें फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा कर ले गया इतनी तन्हा हो गई है रहगुज़र कहना उसे जा रहा है छोड़ कर तन्हा मुझे जिसके लिये चैन न दे पायेगा वो सीम-ओ-ज़र कहना उसे रिस रहा हो ख़ून दिल से लब मगर हँसते रहे कर गया बरबाद मुझको ये हुनर कहना उसे जिसने ज़ख़्मों से मेरा '#शहज़ाद' सीना भर दिया मुस्करा कर आज प्यारे चारागर कहना उसे Farhat Sehzaad

नया हरियाणा कैसे बने -- भाग -2

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  सरकारी अध्यापक  से उमीदें .... आज हम अच्छी गुणवत्ता वाली डिजिटल शिक्षा की बात करते हैं। । 12वें प्लानिंग कमिशन(2012-17) में  Access, Equity, Quality and Governance .की बात कही गई है।  सदा से,  ज्ञान-प्राप्ति ( learning achievements) क्लास पास करने से अधिक महत्वपूर्ण है। पर हक़ीक़त में  अध्यापक भी केवल स्कूली-किताब में छपा (  textual material) ही पढ़ाते हैं । सभी विषयों में दसवीं तक कितने ही चैप्टर्स जाने कितनी बार अलग-अलग क्लास में  अलग-अलग विषयों में शामिल हैं।    कितनी मोटी-मोटी  किताबें और ज्ञान के नाम पर क्लास पास करने के बाद  कुछ भी याद  नहीं रहता। ऐसी शिक्षा किसी नकली दवाई की तरह है।  पैसे और समय की बर्बादी और मर्ज़ वहीँ का वहीँ।  सरकारी स्कूल जहाँ अधिकतर गरीब तबके के हमारे बच्चे पढ़ते हैं वहाँ तो सर्विसेज का पूछो मत। आज सरकारी अध्यापक सिर्फ महीने की तनख्वाह पर काम करने वाला कामगार है शिक्षक नहीं। वह केवल अपनी सुविधाएं देखता है ,अपने लिये आंदोलन भी करता है।   क्या उसने कभी सोचा के...

नया हरियाणा कैसे बने --भाग -1

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परिवारवाद के शासन से मुक्ति हरियाणा जब से बना है तब से क्षेत्रिय दलों का दबदबा रहा है। और ज्यादातर पोलिटिकल परिवार ही हावी रहे हैं। अक्सर कास्ट बेस्ड पॉलिटिक्स की वजह भी यही राज-परिवार रहे हैं। हम भी, जाने क्यूँ भूल जाते हैं कि अंग्रेज़ कभी के चले गए हैं। अब हम किसी के गुलाम नहीं रहे , हम सभी बराबर हैं। कोई भी , चाहे किसी भी परिवार से हो, किसी भी वर्ग से हो ,किसी दूसरे व्यक्ति से बड़ा या सुपीरियर नहीं हो सकता। हमारी सिर्फ यही सोच हमें परिवारवाद के शासन से मुक्ति दि ला सकती है। जब भी परिवारवाद हावी होता है ,दरबारियों की पौ-बारह होती है। योग्यता गर्त में चली जाती है। सभी ऊंचे पदों पर भाई-भतीजावाद काबिज़ हो जाता है। बस यहीं से भ्रष्टाचार जड़ पकड़ना शुरू कर देता है। कोई भी ईमानदार किसी भ्रष्ट माहौल में ईमानदारी से काम नहीं कर पाता। बस इसके बाद सारी तरक्की रुक जाती है और जनता भी अपनी आवाज़ उठाने से डरने लगती है। आज दुनिया भर में साधारण परिवारों से ईमानदार लोग सत्ता पर काबिज़ हो रहे हैं। भारत में भी शरुआत हो चुकी है , आवश्यकता है नौजवानों के सामने आने की। परिवारवाद वाली राजनीतिक पार्टीज हमार...

वक़्त ठहर सा गया है , बीत जाता तो अच्छा था।

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वक़्त ठहर सा गया है , बीत जाता तो अच्छा था।  

महागठबंधन की राजनीति

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मिस्र के एक धार्मिक राजा थे सलाउद्दीन अयूबी। एक बार सारे चोर बदमाशों ने मिलकर विद्रोह कर दिया। उन्हें जंग टालने की सलाह दी गई।  पर वे बोले - बात तो ठीक है ,पर इससे बेहतर मौका मुझे नन्ही मिलेगा।  मैं कहाँ एक-एक को ढूंढ कर मारूंगा। इकट्ठे हो गए हैं तो एक ही बार में सबका फैसला हो जाने दो.  आज अगर सब , कर्णाटक में एक मंच पर खड़े 17 भावी प्रधानमंत्री एक ही साथ जनता के हाथों निबट जाएँ तो बहुत अच्छा।  हमरे देश की जनता को भी जातिवाद ,परिवारवाद ,भ्रष्टाचार के प्रतीकों को सबक सिखाने का मौका मिलेगा।  आज एक भी दल ऐसा नन्ही जो बीजेपी से पटखनी न खा चूका हो। अपने अस्तित्व को बचाना विपक्ष के लिये मोदी जी के सामने निश्चित तौर पर एक चुनौती है। हाँ कांग्रेस को विपक्षी दल भी धोखा देने से बाज़ नन्ही आते। कितने नाटकीय अंदाज़ में सोनिया गाँधी और मायावती की गाल से गाल मिलाकर ली गईं तस्वीरें वायरल हुई थीं।  मायावती जिसका खाता 2014 में जीरो था आज असेम्बली एलेक्शंस में कांग्रेस को ठेंगा दिखा रही हैं।   वाह रे महागठबंधन की राजनीति ! कौन किसका सगा है , सबने एक दूसरे को ठगा ...

S-400 deal- India killed many birds with one stone

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5th October - Indo-Russia pact on S-400 Missile, nuclear power stations, space and agriculture was signed without waiting for any approval from  Washington. In August 2017, the US passed an act CAATSA (  Countering America's Adversaries Through Sanctions Act ) and recently on 21st September imposed sanctions under the same act upon China and Russia for the deal of the same S-400 in between them. 6th October,  the US embassy clarified that CAATSA is not applicable on its strategic partners and allies and indicated no sanctions upon India Now, China is a rival and threat to the US  and India had secured a driving seat in the US-India relationship in the current scenario. Since the 1990s Russia was being felt eliminated from India and was drifting towards Pakistan and promoting its interests in Russia-Pak Military relationships and was not supporting India at the International forum on Kashmir Issues. Through this deal, our traditional ally is being brought closer...

युधिष्ठिर को अंतिम शिक्षा

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दूरदर्शन का सबसे चर्चित धरावाहिको में से एक बी. आर. चौपडा की महाभारत  का एक दृश्य जिसमे भीष्म पितामह  बा णों की शय्या पे लेटे हुए है। उसी समय पाण्डव भगवान कृष्ण के साथ वहां उन्हें ये बताने के लिए आते है की हस्तिनापुर अब चारो ओर से सुरक्षित है , क्यूंकि कौरवों का पराजय हो चुकी है और अब उसका   रा जा धर्मराज युधिष्ठिर हैं। उसी समय भगमान श्री कृष्ण पितामह से कहते है की आप युधिष्ठिर को अंतिम शिक्षा दीजिये , तो पितामह युधिष्ठिर से कहते है। हे वत्स  !  वो राजा कभी अपने देश के लिए सही नहीं होता है जो अपने देश के आर्थिक और सामाजिक रोगों के लिए अतीत को उत्तरदायी ठहरा के संतुष्ट हो जाये। यदि अतीत ने तुम्हे एक निर्बल आर्थिक और सामाजिक ढांचा दिया है तो उसे बदलो , उसे सुधारो क्यंकि अतीत तो यूँ भी वर्तमान के कौसौटी पे खड़ा नहीं उतरता है। क्यूंकि अगर अतीत स्वस्थ होता और उसमे देश को प्रगति के मार्ग पे ले जाने की शक्ति होती तो...

हमें खामोश रहने दो

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तहज़ीब, अदब और सलीका  भी तो कुछ है, झुका हुआ हर शख़्स,  बेचारा नहीं होता । हम समंदर है   हमें खामोश रहने दो , ज़रा मचल गए तो   शहर को ले डूबेंगे । (Unknown)

ये चालाकों की बस्ती थी और हज़रत शर्मीले थे -ग़ुलाम मोहम्म-द 'क़ासिर'

मेरे क़िस्से में अचानक जुगनुओं का ज़िक्र आया  आसमाँ पर मेरे हिस्से के सितारे जल रहे हैं  राख होते जा रहे हैं माह-ओ-साल-ए-ज़िंदगानी  जगमगा उठ्ठा जहाँ हम साथ पल दो पल रहे हैं  जुनूँ का जाम मोहब्बत की मय ख़िरद का ख़ुमार  हमीं थे वो जो ये सारे कमाल रखते थे  सब से कट कर रह गया ख़ुद मैं सिमट कर रह गया  सिलसिला टूटा कहाँ से सोचता भी मैं ही था  शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे  घिसते घिसते घिस गए आख़िर कंकर जो नोकीले थे  कौन ग़ुलाम मोहम्मद 'क़ासिर' बेचारे से करता बात  ये चालाकों की बस्ती थी और हज़रत शर्मीले थे 

अटल बिहारी वाजपेयी जी यह 4 काम दिल से करना चाहते थे

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अटल बिहारी वाजपेयी जी यह 4 काम दिल से करना चाहते थे ....                    वाजेपयी जी ने इन 4 कामों को पूरा करने के प्रयास भी बहुत किए                                      लेकिन,यह अधूरे रह गए, अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के सिर पर है कि क्या वे ये अधूरे 4 कार्य पूरे करेंगे ??                      -कवि, साहित्यकार, पत्रकार और अजातशत्रु  , स्वर्गीय श्री  अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के तौर पर कई कामों के लिए याद किया जाता है। देश में सड़कों का जाल बिछाने की योजना हो या फिर मोबाइल क्रांति, कई मोर्चों पर वाजपेयी जी ने अपनी दूरदर्शिता दिखाई। इसके साथ ही परमाणु परीक्षण को भी वाजपेयी सरकार ने आक्रामक तरीक़े से अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश किया था। लेकिन,  ऐसे भी कई मोर्चे थे, जिनपर काफ़ी प्रयास करने के बावजूद वाजपेयी जी सफल नहीं हो पाए थे ,  वाजपेयी जी इन 4 कामों क...

मैं भी तुझसे कम नंही

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   आह ! ज़िन्दगी  तू मुझे कैसे -कैसे रंग दिखाती है    पर मैं  भी  तुझसे कम नंही , इन्ही रंगों  से  नई तस्वीर  बना  लेती  हूँ

शीशा या मैं

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देखी दरार  मैंने आज  आईने में, पता नहीं  शीशा टूटा था,  या मैं?

आज तुझको खत लिखूँ तो......

खत लिखे थे प्यार के जब, दिन दुबारा लौट आये आज तुझको खत लिखूँ तो, क्या पता तू लौट आये ? दूर के जितने पते हैं, रास्तों से पूछ लूँगा क्या पता कोई संदेशा , मीत तेरा लौट आये ? आज फिर इन बारिशों में, भीगने का मन हुआ था आज तेरे गेसुओं को, छेड़ने का मन हुआ था हो गया मौसम यहाँ पर , आज फिर बेचैनियों का धड़कनों की धुन सुने तो, क्या पता तू लौट आये ?-- Unknown

क़लम जब तुमको लिखती है

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क़लम जब तुमको लिखती है, दख़ल-अंदाजी  फ़िर हम भी नहीं करते। ----- कमबख्त नींद से  मेरी लड़ाई चल रही है। ----- मुझे आग़ोश में लेकर,  तेरे किस्से  सुनाती है मेरी रातें, और  मुझे ही सुलाना भूल जाती हैं ----- 

हम ने भी देखी है दुनिया ---- -मोहसिन ज़ैद

कोई दीवार न दर जानते हैं  हम इसी दश्त को घर जानते हैं  जान कर चुप हैं वगरना हम भी  बात करने का हुनर जानते हैं  ये मुहिम हदिया-ए-सर माँगती है  इस में है जाँ का ख़तर जानते हैं  लद गई शाख़-ए-लहू फूलों से  आएँगे अब के समर जानते हैं  जान जानी है तो जाएगी ज़रूर  हम दुआओं का असर जानते हैं  कौन है ताबा-ए-मोहमल किस का  किस का है किस पे असर जानते हैं  लोग उसे मस्लहतन कुछ न कहें  उस की औक़ात मगर जानते हैं  रात किस किस के उड़े हैं पुर्ज़े  शहर में क्या है ख़बर जानते हैं  रात काटे नहीं कटती है मगर  रात है ता-ब-सहर जानते हैं  हम ने भी देखी है दुनिया   है किधर किस की नज़र जानते हैं सब   

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला -ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला  और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला  तस्वीर नहीं बदली शीशा भी नहीं बदला  नज़रें भी सलामत हैं चेहरा भी नहीं बदला  है शौक़-ए-सफ़र ऐसा इक उम्र से यारों ने  मंज़िल भी नहीं पाई रस्ता भी नहीं बदला  बेकार गया बन में सोना मिरा सदियों का  इस शहर में तो अब तक सिक्का भी नहीं बदला  बे-सम्त हवाओं ने हर लहर से साज़िश की  ख़्वाबों के जज़ीरे का नक़्शा भी नहीं बदला 

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