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सिंचाई महकमें-जमकर लूटो और फिर बच निकलो

जमकर लूटो और फिर बच निकलो -हरियाणा के सिंचाई विभाग में जमकर लूट मचाओ और फिर बच निकलो, क्योंकि कार्रवाई किसी पर होनी ही नहीं है। जी हां, सालों से इस महकमें में यही होता आ रहा है। यहां पर जांच पर जांच का खेल चलता रहता है। सिंचाई महकमें में पूर्व सरकार के दौरान सिरसा का ओटूवीयर झील घोटाला हुआ था, जिसमें करीब 100 करोड़ का करप्शन था। हैरानी की बात यह है कि पूर्व सरकार ने इस भ्रष्टाचार  में 32 इंजीनियरों को सस्पेंड किया और फिर जाते-जाते सभी  इंजीनियरों को बहाल भी  कर गई और उनको क्लीन चिट भी  दे गई।  इसके अलावा पूर्व सरकार में ही हथनी कुंड बैराज घोटाला हुआ, पूर्व सरकार के समय में हथनी कुंड बैराज मरम्मत के लिए 2010 में 40 करोड़ रुपए के काम अलॉट हुए थे, लेकिन जब 17 करोड़ के काम पूरे हो चुके थे तो पता चला कि हथनी कुंड बैराज मरम्मत के लिए सीमेंट की जगह रेत से यमुना के किनारे पक्के किए जा रहे हैं। सिंचाई विभाग की विजिलेंस ने अपनी जांच में पाया कि यहां तो सारा ही गोलमाल हो रहा है। श्रीराम लैब में भेजकर सैंपल जांच करवाए तो 90 प्रतिशत से अधिक सैंपल फेल पाए। इस मा...

डिफॉल्टर बिजली उप•ोक्ता बने हुए हैं जी का जंजाल

डिफॉल्टर बिजली उप•ोक्ता बने हुए हैं जी का जंजाल -आज के दिन 7449 करोड़ 94 लाख रुपए डिफॉल्टरों में फंसा हुआ है -केंद्र सरकार बना रही है नए नियम, डिफॉल्टरों पर रहम नहींं -ईमानदार बिजली उप•ोक्ताओं को दें हर हाल में 24 घंटे बिजली चंडीगढ़। हरियाणा की बिजली वितरण कंपनी उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम (यूएचबीवीएन) और दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (डीएचबीवीएन) के लिए डिफॉल्टर बिजली उप•ोक्ता जी का जंजाल बने हुए हैं। आज के दिन इन दोनों निगमों का 7449 करोड़ 49 लाख रुपए डिफॉल्टर बिजली उप•ोक्ताओं में फंसा हुआ है। इसकी रिकवरी के लिए सर्दी के मौसम में बिजली निगम के अधिकारियों को पसीना आया हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्रीय बिजली मंत्रालय बहुत जल्द ऐसे नियम लागू करने जा रहा है, जिसमें डिफॉल्टर बिजली उप•ोक्ताओं पर कोई रहम नहीं करना और ईमानदार बिजली उप•ोक्ता को हर हाल में 24 घंटे बिजली देना हर हाल में सुनिश्चित करना है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हर हाल में 3 माह के अंदर-अंदर स•ाी लंबित बिजली कनेक्शनों को जारी करें, इसके अलावा इस दौरान कोई बिजली उप•ोक्ता अपना पुरान...

सम्मान समय और स्थिति का होता है,

-सम्मान समय और स्थिति का होता है, जिसे इंसान अपना समझ लेता है, जब इंसान पावर में होता है तो कई बार वह  पब्लिक को कीड़े मकोड़े समझना शुरू कर देता है. कितनी बड़ी बात है कि 5 मार्च 2005 से लेकर 26 अक्तूबर 2014 तक एक छत्र राज करने वाले हुड्डा के ओएसडी महेंद्र सिंह चोपड़ा सीएम से भी पावर फुल होते थे, यह कहें कि सुपर सीएम थे तो काई अतिश्योक्ति नहीं होगी, इनके सरकारी मकान नंबर 70 सेक्टर 7 जिसमें आजकल विपुल गोयल रहते हैं, यह मकान इनके पास था. खुद हुड्डा साहब तक इनके मकान में आते थे ओर सरकारी काफिले को वापस भेज देते थे, इनके घर के बाहर अफसरों की भीड़ लगी रहती थी, आईएएस और आईपीएस की पोस्टिंग यहीं से होती थी, इस कोठी में किरण चौधरी और महेंद्रप्रताप को छोडक़र सभी उस समय के मंत्री भी मत्था टेकने आते थे, खुद रणदीप सिंह सुरजेवाला भी यहां निरंतर आते रहे हैं, उस समय चोपड़ा साहब के पास वक्त नहीं होता था, एक बार तो सतपाल  सांगवान इनके घर के बाहर कई मिनट खड़े होकर चले गए, लेकिन उनसे भी नहीं मिले, लेकिन  अब देखिए वक्त, चोपड़ा साहब जब हुड्डा की दिल्ली कोठी में होते हैं तो अखबार पढ़ते रहते है...

मेरा किसान कुंभकरण की नींद सो रहा है

कुछ बातें आज 90 वर्षों बाद भी वही की वही ठहरी लगती है खासकर किसानो के बारे . आज से लगभग 90 वर्ष पहले सर छोटूराम ने जाट गजट में लिखा की -मेरा किसान कुंभकरण की नींद सो रहा है, मैं उसे जगाने की कोशिश मे लगा हूं ,कभी उसके तलवे पर गुदगुदी करता हूं ,कभी उसके मुंह पर पानी के ठंडे छींटें मारता हूं ,वह आंख खोलता है, करवट बदलता है ,अंगड़ाई लेता है और जंभाई लेकर फिर सो जाता है. 1970 में गेहूं का का भाव 76 रुपए प्रति किवंटल था और उस समय सोने का भाव 184 रुपए का दस ग्राम होता था, उस दौरान किसान करीब ढ़ाई किवंटल गेहूं बेचकर एक तोला सोना खरीद लेता था। आज सोने का price 30 हजार रुपए प्रति तोला है और गेहूं का भाव 1625 रुपए प्रति किवंटल है। आज हरियाणा में 16 लाख 17 हजार किसान परिवार हैं, इन किसान परिवारों से ही सेना और अर्ध सैनिक बलों में जवान भर्ती होते हैं, हमारे जवान जब देश की सीमा पर लड़ रहे होते हैं तो एक ध्यान उसका अपने बुजुर्ग माता पिता की ओर होता है, कि पता नहीं मेरे बाप को फसल के सही दाम मिले भी है या नहीं.जवान को यह चिंता हमेशा सताती है. आज देश मे करीब 60 करोड़ आबादी किसानों की ह...

फसल के वक्त अनाज सस्ता , बाद में महंगा,

फसल के वक्त अनाज सस्ता , बाद में महंगा, यह सन्तुलन बिठाने में सरकार पूरी तरह नाकाम -अब समय आ गया है एक बार किसान की स्लेट साफ कर देनी चाहिए -किसानों की पीड़ा यह है कि कभी उनको फसल के सही दाम नहीं मिले. कमीशन फ़ॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट एडं प्राइस (सीएसीपी) ने कभी भी किसानों को उनकी फसलों के सही दाम नहीं दिए. सरकारें कहती हैं कि किसान को परंपरागत फसलें छोड़कर सब्जियों और फूलों की खेती करनी चाहिए.लेकिन ,अब जो किसान सब्जियां उगाते हैं, उनकी हालत भी बहुत दयनीय है. किसान की लौकी जहां 2 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती है और वही लौकी दिल्ली पहुंचते पहुंचते उसकी कीमत 15 गुना बढ़ जाती है और यह लौकी 30 रुपए किलो में बिकती है.दूसरी सब्जियों का भी यही हाल है. अब हरियाणा का किसान सालों से सूनता आ रहा है कि हरियाणा में विश्व स्तर की होर्टिकल्चर मंडी बनेगी, इसके लिए प्रदेश के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ विदेशों के दौरे भी कर रहे हैं, लेकिन लगता नहीं कि इस सरकार के कार्यकाल में यह मंडी बनकर तैयार हो जाएगी.इसके अलावा हरियाणा में एक फूलों की मंडी भी बननी है, वह भी अ...

महिला आरक्षण बिल-Few points

महिला आरक्षण बिल-(part-1) ( Few points against women reservation to be discussed) संसद में करीब दस प्रतिशत महिला सांसद हैं. विधानसभाओं में तो और भी कम हैं. राजनीतिक पार्टियों में महिला पदाधिकारियों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है लेकिन राजनीति में महिलाओं की भूमिका सीमित है, जबकि आज वे हर क्षेत्र में बढ़ रही हैं. 1. पुरुष सत्ता और ताकत के बंटवारे के लिए तैयार नहीं है 2. शहरी महिलाएं संसद में आएंगी और गरीब-पिछड़ी, दलित महिलाओं को मौका नहीं मिलेगा 3. महिलाएं चाहती hein कि वो आरक्षण के रास्ते नहीं बल्कि अपने बलबूते पर आएं. 4. 'पावर' एक स्तर पर पहुंचकर महिला-पुरुष में फ़र्क नहीं करती इसलिए शक्तिशाली महिलाएं और महिलाओं के हक़ में काम करें ये ज़रूरी नहीं. 5. महिलाओं के आरक्षण से परिवारवाद की शक्ल में,पत्नियों, बहुओं, और बेटियों को ही बढ़ावा मिले." 6. आरक्षण नहीं ज़मीनी स्तर पर औरतों की भागीदारी बढ़ाने से ही बदलाव आएगा - महिला सरपंच तो बन जाती है पर असली ताकत उनके परिवार के पुरुष अपने हाथ में रखते हैं. 7. राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व तभी बढ़ेगा जब पुरुष ये समझ जाएंगे कि उनसे ...

जिसमें शिशु लिंगानुपात के बारे में सही और पुख्ता

एक लंबे अर्से के बाद आखिरकार सरकार को वह रिपोर्ट मिल गई है, जिसमें शिशु लिंगानुपात के बारे में सही और पुख्ता जानकारी है। अ•ाी तक शिशु लिंगानुपात के बारे में जो दावे किए जा रहे थे, वह स्थिति पूरी तरह से सही नहीं है, आंकड़ों में गड़बड़ियां मिली हैं। मिली जानकारी के मुताबिक जुलाई 2017 तक का जो डाटा आया है उसमें लड़कियों की संख्या 909 है, लेकिन यह •ाी सही नहीं है, क्योंकि कई जगह पर लड़कों के जन्म का रजिस्ट्रेशन देरी से किए जाते हैं। यदि सही समय पर ठीक से रजिस्ट्रेशन हो तो शिशु लिंगानुपात मामले में 1000 लड़कों के पीछे 884 लड़कियां ही हैं।   प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने 5 जून को स्वास्थ्य वि•ााग के अतिरिक्त मुख्यसचिव अमित झा को आदेश दिए थे कि वे इस मामले की जांच करके बताएं। उसके बाद इस मामले की जांच की गई, जिसमें पाया गया कि नारनौल में लड़कों की संख्या को लड़कियों की जगह दिखाया गया है। इस मामले में कंप्यूटर आपरेटर की गलती बताई जा रही है।   उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत में देशवासियों से •ाावनात्मक अपील करते हुए बेटियों के जीवन की •ाीख मांगते ...

क्या किसान आर्थिक प्रगति पर बोझ हैं?

क्या किसान आर्थिक प्रगति पर बोझ हैं? .... भारत के 85 करोड़ किसान मेरे पिताजी भारत सरकार के कर्मचारी थे। 1996 के आसपास उनकी सैलरी लगभग छः हज़ार रुपए महीना थी। आज उन्हीं के पोस्ट पर काम करने वाले लोगों की सैलरी लगभग सत्तर हज़ार रुपए हैं। मेरे पिताजी 55 साल की उम्र तक साइकिल से चलते रहे। सिर्फ़ इसीलिए कि वह स्कूटर/मोटरसाइकिल अफ़ोर्ड नही कर पाए। पचपन की उम्र में बहुत मुश्किल से उन्होंने मोटरसाइकिल ख़रीदा। उनकी लीएबिलिटी सिर्फ़ इतनी थी कि तीन बेटों को पढ़ा लिखा दें। आज उन्ही के पद पर काम करने वाले लोगों के पास एक फ़ैमिली कार होती है। मेरे पिताजी रिटायरमेंट के समय में मोटरसाइकिल ख़रीदे। उसी पोस्ट पर काम करने वाले 1960 के दशक में लोग ज़िंदगी भर मोटरसाइकिल भी ना ख़रीद पाते थे। यदि पंजाब के किसान की बात छोड़ दें तो 5 एकड़ जोतने वाले किसान, सिर्फ़ खेती से शायद ही कार अफ़ोर्ड कर पाएँगे। पाँच एकड़ ज़मीन वाले किसान का नेट असेट एक करोड़ के आस पास होता है। ज़रा ख़याल कीजिए कि क्या एक करोड़ की सम्पत्ति वाले किसी भी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति ऐसी हो सकती है कि वह कार अफ़ोर्ड कर सकता है। इन दोनो मुद्दों ...

भाखड़ा बांध छोटूराम की देन।

भाखड़ा बांध छोटूराम की देन। सन 1937 की मिनिस्ट्री में जब सर छोटूराम आ गए तो 12 जून को असेम्बली में अपने विरोधियों को उत्तर देते हुए उन्होंने कहा सबसे अधिक महत्व की बात भाखड़ा बांध योजना है, मैं इस पर एक ही बात कहना चाहूंगा यह की दक्षिण पूर्वी पंजाब के मैम्बर विश्वास रखें कि उनके इलाके की सिंचाई के प्रबंध के लिए मैं चैन की नींद नहीं सोऊंगा। भाखड़ा बांध के सम्बंध में 4 समस्याएं थी। ★बीसियों करोड़ रुपए खर्चा ★इंजीनियरों और विशेषज्ञों की स्वीकृति ★केन्द्रीय सरकार का सहयोग ★सिंध सरकार की मांग भाखड़ा बांध आज जहाँ बना है सतलुज का यह नाका तो पंजाब की सीमा में है किंतु 60 मील लम्बी झील जो गोबिंदसागर के नाम से विख्यात है वो बिलासपुर रियासत की सीमा में थी, इसके लिए विलासपुर रियासत से इकरारनामा भी जरूरी था। चौ० छोटूराम ने ये इकरारनामा तो कराया ही साथ मे सिंध को 6 करोड़ रुपए अपनी नहरों को दुरुस्त करवाने के लिए प्रिवी कॉउन्सिल से अपील कर के दिलवाए क्योंकि सतलुज का पानी इधर रुकने से सिंध की नहरें बेकार होती थी।। चौ० साहब की आखिरी योजना भाखड़ा बांध ही थी जिसपर उन्होंने 1945 में हस्ताक्षर किए।

हरियाणा के गावों की गलियों में आईएसआई मार्का ही टाइलें का सच क्या है ?

हरियाणा के गावों की गलियों में आईएसआई मार्का ही टाइलें का सच क्या है ? एक जनवरी से आईएसआई मार्का ही टाइलें लगेंगी लेकिन पहले बगैर आईएसआई ही चल रही हैं। गांवों की गलियां पक्की करने के लिए टाइलें और पेवर ब्लॉक के मामले में पंचायत विभाग का हैरतगेंज फैसलाबी लिया गया। पंचायत विभाग का यह नोटिफिकेशन 7 जून को जारी हो गया था। हांलाकि सरकार ने आईएसआई मार्का की टाइलें और पेवर ब्लॉक लगाने का फैसला तो ठीक लिया है, लेकिन यह फैसला एक जनवरी 2018 से ही क्यों लागू किया जा रहा है, पहले से क्यों नहीं? जबकि पंचायतों को वित्तीय शक्तियां भी अधिक दी गई हैं , अब पंचायतें 10 लाख की बजाए 20 लाख तक के कार्य करवा सकेंगी। प्रभाव - 1. पंचायत विभाग से जुड़े रहे पूर्व इंजीनियरों के मुताबिक क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिए। 2. जो व्यक्ति टाइलें और पेवर ब्लॉक बना रहा है, उसके यहां कोई क्वालिटी चैकिंग सिस्टम होना चाहिए । उसकी कीमत का भी ध्यान रखना जरूरी है। 3. 1 जनवरी 2018 से हर हाल में टाइलें और पेवर ब्लॉक की क्वालिटी से किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया जाएगा। 4. जिन मैन्यूफेक्चरर के पास आईएसआई प्रम...

हर गांव को बिजली

हर गांव को बिजली मुझे व्यक्तिगत तौर पर ये लगता है आजादी के बाद देश के विकास की किताब उल्टी खोली गई थी...गांधी जी ग्राम स्वराज की बात करते थे और नेहरू जी जो विदेश से शिक्षा लेकर आये थे उनकी नजर में विकास के मायने शायद बड़े- बड़े कारखाने, धुंआं छोड़ती चिमनियां, मोटर कार और शहरों में सुंदर मकान थे...देश को उस वक्त तरक्की की जरूरत थी औघोगिक क्रांति की जरूरत थी...शायद इसीलिए शहरी इलाकों का विकास तेजी  से होने लगा.. .शुरुआत के दो ढाई दशकों तक सब ठीक ठाक लग रहा था लेकिन इसके विपरीत नतीजे 70 के दशक और उसके बाद एक दम से दिखने लगे....गांव से जो लोग शहरों में आकर बस गये थे वो संपन्न हो रहे थे....बिजली, पानी, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा रहे थे....उधर गांव के हाल में सुधार कुछ फीसदी ही देखने को मिल रहा था... .ये चकाचौंध 80 के दशक के बीच तक गांव के लोगों को लालच देने लगी....क्योंकि गांव के विकास की ओर तब से लगभग लगातार चली आ रही कांग्रेस सरकारों का ध्यान गया ही नहीं था.. .अब गांवों से शहरों की ओर पलायन करने वालों की संख्या में अचानक इजाफा होने लगा....इसका नतीज ये रहा कि ज...

आरक्षण आंदोलन (हिंसा ) से ख़राब हुई छवि को फिर से बनाना जरूरी- प्रदीप डबास

आरक्षण आंदोलन (हिंसा ) से ख़राब हुई छवि को फिर से बनाना जरूरी अभी थोड़ी देर पहले एक विद्वान शख्स के पास बैठा हुआ..उन्होंने एक बेहद गंभीर बात कही कि छवि बनाने के लिए आपको सालों लगातार मेहनत करनी पड़ती है लेकिन आपका एक गलत कदम उस छवि को खराब कर सकता है। ...सही कहा उन्होंने...उनके जाने के बाद से लगाता विचार कर रहा हूं कि छवि केवल इंसानों की ही नहीं बल्कि देश और प्रदेशों की भी खराब हो सकती है...अचानक आंखों के सामने पिछले साल आरक्षण के नाम पर हुई हिंसा आ गई...माफ कीजिए अगर किसी को ऐतराज हो लेकिन मेरा ये मानना है कि उस हिंसा की वजह से प्रदेश की छवि को बेहद नुकसान हुआ है... ... मुझे याद है इतवार को 14 तारीख का वो दिन...राजस्थान के हनुमानगढ़ जा रहा था...जाते हुए सांपला क्रॉस किया तो सब कुछ सामान्य था, फिर हिसार के मय्यड़ में रैली थी लेकिन वहां भी लोग पहुंच ही रहे थे आंदोलन जैसी कोई सुगबुगाहट नहीं थी वहां भी....खैर उसी दिन वापस आना था सांपला पहुंचते पहुंचते रात के करीब दस बस गये थे...जैसे ही सांपला के पास पहुंचा तो लंबा जाम लगा हुआ था...मुझे लगा कि कोई दुर्घटना की वजह से गांव वालों ने रा...

ख़बरों की प्रासंगिकता के सन्दर्भ में -- प्रदीप डबास

ख़बरों की प्रासंगिकता के सन्दर्भ में इस देश में हजारों अदालतों में रोजाना कई लोगों को बलात्कार के आरोप में सज़ा सुनाई जाती है, रोजाना सैंकड़ों की संख्या में पुलिस से भगौड़े घोषित लोगों को गिरफ्तार किया जाता है लेकिन हनीप्रीत अगर पकड़े जाने से पहले किसी चैनल को मैनेज कर गई तो चैनल को लग रहा है कि तीर मार लिया। सवाल ये है कि आगे रहने की होड़ में यहां कानून से खिलवाड़ हुआ है या नहीं। चैनल की ओर से पुलिस को सूचित किया जाना चाहिए था एक भगौड़ी का इंटरव्यू करके ये लोग खुद को धन्य समझ रहे थे। मानो आज देश में हनीप्रीत के अलावा कोई खबर नहीं थी। कश्मीर में बीएसएफ कैंप हर हमला और तीन आतंवादियों के ढेर होने की खबर को न्यूज चैनल वाले हनीप्रीत के सामने छोटा समाचार मानते हैं। किस तरह बेबस सी हो गई है पत्रकारिता। लगता है कि मुद्दे नहीं सिर्फ मसाला चाहिए क्योंकि मध्यम वर्ग हनीप्रीत को देखता है सिर्फ कुछ फीसदी बुद्धिजीवी कश्मीर जैसे गंभीर मुद्दों को देखना चाहते हैं। समाचार पत्र और न्यूज चैनलों में बैठे लोगों को दौड़ में बने रहने के लिए हनीप्रीत ही सुहाती है, नहीं तो खबर हर बुलेटिन में हैड लाइ...

आओ पत्रकारिता की बात करें

आओ पत्रकारिता की बात करें एक मेरे दोस्त ने मुझसे पूछा है कि पत्रकारिता के सामने क्या चुनौतियां हैं ? मेरा मानना है कि पत्रकारिता तो अपने आप में ही एक चुनौती है। वह चुनौती है अपने आप को निष्पक्ष दिखाना। निष्पक्ष बने रहना आज के दिन की सबसे बड़ी चुनौती है। अगर हम बात करें चैनल्स की तो देखिए आप लगातार कितने न्यूज़ चैनल झेल सकते हैं ? अगर अखबार की बात है तो कितने अखबार ऐसे हैं जिनमें हमारी मनचाही खबर छपती है ? इस दौर में जितना दोष पत्रकारों का है उतना ही दोष दर्शकों का और पाठकों का भी है। कितने पाठक ऐसे हैं जो यह चाहते हैं कि निष्पक्ष ख़बर पढ़ने को मिले ? कोई चाहता है कि BJP की खबर पढ़ने को मिले, कोई चाहता है कि कांग्रेस की खबर प्रमुखता से छपी हो, कोई चाहता है वह वामपंथी विचारधारा का अखबार हो! दरअसल बात यह है कि सिर्फ पत्रकार ही नहीं दर्शक और पाठक भी निष्पक्ष होने चाहिएं। वैसे अगर बात खबर की ही चली है तो मेरा मानना यह है कि खबर तो हमेशा निष्पक्ष ही रही है और निष्पक्ष रहेगी जब तक उसमें पत्रकार अपने विचार ना जोड़ दे। जहां भी पत्रकार अपना नजरिया खबर में डालता है खबर वही दूषित हो जाती ...

इसके आगे सिर्फ विनाश है---

इसके आगे सिर्फ विनाश है---  कहते हैं कि बेल(लता) और औरत नजदीक वाली चीज पर चढ़ते हैं। यह बात काफी हद तक सत्य है। लता हमेशा सहारा ढूंढती है उसके पास में कोई दीवार पेड़ या कुछ ऊंची चीज हो तो उस पर चढ़ जाती है।ठीक उसी तरह कुदरत ने स्त्री को इस तरह बनाया है कि वह सहारा जल्दी ले लेती है उदाहरण के तौर पर जब स्त्री छोटी होती है यानी बच्ची के रूप में तो वह अपने पापा की दुलारी होती है, जब उसकी शादी हो जाती है तो उसको पति से बेहद प्यार होता है और जब बुढ़ापे में होती है तो उसको पुत्र सबसे प्यारा होता है इन तीनों चीजों में एक बात कॉमन है कि परिवार में जो शक्ति का केंद्र होता है परिवार की महिलाएं उसी के साथ होती हैं (कृपया इसे अन्यथा ना लें, मैं पाक रिश्तों की बात कर रहा हूँ) एक बच्ची को पिता क्यों प्रिय होता है मतलब साफ है उस समय पिता परिवार की शक्ति का केंद्र होता है। शादी के समय पति शक्तिशाली होता है अतः स्त्री पति की तरफ स्वतः आकर्षित हो जाती है और बुढापे में जब पुत्र जवान हो जाता है तो उम्रदराज महिला शक्तिशाली पुरुष यानी बेटे की तरफ झुकाव हो जाता है। यह कुदरती स्वभाव ही है। हालांकि हो...

मिनी हाइड्रो प्लांट-कौशल्या डेम में क्यों इतनी जल्दबाजी की?

मिनी हाइड्रो प्लांट-कौशल्या डेम में क्यों इतनी जल्दबाजी की? -कौशल्या डेम जो पहले से विवादों में है, इसमें 25 इंजीनियरों को सरकार किसी भी समय चार्जशीट कर सकती है, यह सब को पता है कि कौशल्या डैम एक तरह से सफेद हाथी है, क्योंकि इस डैम में क•ाी पानी नहीं आना है, इसमें केवल बरसात के दौरान थोड़ा बहुत पानी आ सकता है, यह एक तरह से बरसाती नाला है। अब बगैर पानी के किस ने कौशल्या डेम पर हाइड्रो प्लांट लगाने की सलाह दी, यह अपने आप में बड़ा प्रश्न है। चलो मान लेते हैं यहां पर कुछ किलोवाट बिजली पैदा भी हो जाए , तो सवाल यह उठता है कि इस बिजली का करेंगे क्या? इससे तो पिंजौर का काम भी नहीं चलना, फिर बेवजह इस प्रोजेक्ट को क्यों मंजूरी दी गई है। पंजाब में इस तरह के कई मिनी हाइड्रो प्लांट लगाए गए थे, जिसमें भारी धांधलियां हुई। इस मामले में वहां जांच भी चल रही हैं। वहां पर किसने इन प्रोजेक्टों को हरी झंडी दी उन सब की जांच हो रही है। हरियाणा में हरियाणा बिजली विनियामक आयोग (एचईआरसी) के चेयरमैन ने कौशल्या डेम पर बनने वाले इन मिनी हाइड्रो प्लांट पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब अभी हरेडा और डिस्कॉ...
किसानों का कौन सहारा -भाग -1 वोट बैंक नहीं आत्मनिर्भर बनो बात चली है किसानों की बदहाली की। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि आज के दिन किसान आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन गया है।कौन सी पार्टी किसान का कितना भला चाहती है और कौन सी राजनीतिक पार्टी किसान के नाम पर ज्यादा घड़ियाली आँसूं बहा सकती है? यही दावपेच चल रहे हैं क्योंकि भारत में किसानों जितना बड़ा और कोई वोटबैंक नहीं है। सभी की निगाहें किसानों की वोट पर टिकी हैं। मुद्दे की बात कोई नहीं कहता कि किसान को क्या करना चाहिए, किसान को क्या अपनाना चाहिए ताकि वह खुशहाल हो। किसानों की जो कुछ कमियां हैं उनको भी रेखांकित किया जाना जरूरी है। प्रोग्रेसिव किसान जो रोल मॉडल हो सकते हैं, उनको लाइमलाइट में लाना भी जरूरी है। पारंपरिक खेती की बजाए आधुनिक खेती कैसे हो इस पर जोर देना जरूरी है साथ ही अंधाधुंध रासायनिक खाद और रासायनिक कीटनाशकों पर भी किसानों को जागरुक करना आवश्यक है इसके साथ-साथ इसके साथ-साथ सरकारी महकमा क्या कर रहा है ? इसकी मॉनिटरिंग होना बहुत जरूरी है। मॉनिटरिंग के साथ-साथ कृषि विभाग का सोशल ऑडिट होना भी बहुत जरुरी है। अब...

दादूपुर नलवी और मिनी हाइड्रो प्रोजेक्ट बने जी का जंजाल

दादूपुर नलवी और मिनी हाइड्रो प्रोजेक्ट बने जी का जंजाल इस समय हरियाणा की राजनीति में दो बड़े मामले चर्चा का विषय बने हुए है - दादूपुर नलवी और कौशल्या डेम दादूपुर नलवी नहर का जब 2007 से 2009 के बीच निर्माण हुआ तो उस समय 25 प्रतिशत मिट्टी तो नहर के निर्माण में काम आ गई बाकी 75 प्रतिशत मिट्टी कहां गई? इस मामले पर अब सरकार के स्तर पर जांच हो सकती है, सरकार वैसे ही इस नहर का डिनोटिफाई करके विपक्ष के निशाने पर आई हुई है, लेकिन मिट्टी चोरी की जांच करके एक तरह से विपक्ष को कमजोर कर सकती है। हांलाकि यह बात सही है कि पूर्व सरकार के दौरान ही सिरसा का ओटूवीयर झील घोटाला हुआ था जिसमें सिंचाई विभाग के 32 इंजीनियर सस्पेंड हुए थे, हांलाकि इस नहर की भी मिट्टी बताते हैं कि हाइवे का निर्माण करने वाली कंपनियों को बेची गई है, इसमें दो कांग्रेस के नेताओं के नाम भी आ रहे हैं, जिन्होंने यहां अपने डंपर लगाए हुए थे। किंतु,बड़ी बात यह है कि यदि दादूपुर नलवी नहर की मिट्टी चोरी की जांच होती है तो दूसरी नहरों की मिट्टी भी जरूर बेची गई होगी। सिंचाई विभाग के अधिकारी परेशान है कि आखिर मिट्टी चोरी की बात कहा...

युवा दिशा चाहते हैं, दुर्दशा नहीं..

युवा दिशा चाहते हैं, दुर्दशा नहीं.. जब कोई व्यक्ति अपने हितों के लिए संघर्ष करता है तो उसे हर वो आदमी अपना लगने लगता है जो उसके जरा सा भी काम आ सकता है। कौम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। आरक्षण के लिए सूबे में संघर्ष चल ही रहा था तो एक नाम 2010 के बाद अचानक से सुर्खियों में आने लगा। वो पड़ोसी प्रदेश से आया था और हरियाणा में जाटों के हितों के लिए बिगुल बजा दिया। पता नहीं क्यों सूबे में कौम के लोग भी इसके साथ आने लगे। मुझे याद है 2012 के मध्य में इस व्यक्ति ने हरियाणा में संघर्ष और बंद का ऐलान कर किया था। इसी सिलसिले में दिल्ली के मुंडका मैट्रो स्टेशन के नीचे इन लोगों ने जाम लगाया था। शाम को टीवी पर बहस के दौरान मैंने इन सहाब को फोन लाइन पर जोड़ रखा था। उस संवाद की ज्यादातर बाते मुझे बहुत अच्छे से इसलिए याद हैं क्योंकि उस वक्त मैं इस आदमी की फितरत समझने की कोशिश कर रहा था जो खुदको एक कौम के हितों का पैरोकार साबित करने पर तुला था। मेरा पहला और सीधा सवाल ये था कि आपके इस प्रदर्शन में युवा तो कहीं दिखे नहीं, जितने भी लोग थे वो 50 साल से ऊपर के ही दिख रहे य़े। क्या नौकरियां इन्हें चा...

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